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दूहा १ सूतर मैं समचै कही, अनुकंपा
अधिकार। भीक्खू तास भली परै सोध लियो तंत सार। २ जीव असंजति जेहनौ, जीवण बांछै जांण।
सावज अनुकंपा सही, मोह राग महि मांण। ३ मरणौ वांछयां द्वेष महि, जीवण राग जिवार।
पाप अठारां में प्रगट, भ्रमण करावै भार।। ४ मोह-राग अनुकंप मैं, आज्ञा न दियै आप।
इह कारण सावज अछ, प्रगट राग है पाप।। ५ तिरणौ वांछै ते सही, श्री जिन आज्ञा सार।
पाप टळावै पारकौ, ते निरवद इकतार।। . ६ निरवद कुरणा' निरमळी, सावज्ज अधिक असार। ... विविध सूत्र निरणो सखर, स्वाम . कियौ तंत सार।। ७ प्राछित आवै ते प्रगट, अरिहंत आज्ञा बार।
अनुकंपा सावज अछै, वारू हीयै विचार।। ८ गाय भैंस आक थोड नौं, ऐ च्यारूंड __ज्यूं अनुकंपा जाणजो, मन मैं राखे सूध।। ९ आक दूध पीधां छतां, जुदा हुवै जीव काय। ___ ज्यूं सावज अनुकंपा कीयां, पाप कर्म बंधाय।।
ढाळ : १४
(दया धर्म श्री जिनजी नी वाणी) १ अनुकंपा तस जीव री आंणी, बांधै छोडै साधू तिण वारो जी। . छोड़तां नैं अनुमोद्यां चौमासी, 'नसीत बारमैं " निरधारो जी।।
स्वाम भीक्खू निरणौ कियौ सूतर सूं ॥ ध्रुवपद ॥
दूधा
१. करुणा (क)। २. हियै (क)।
३. अनुकंपा री चौपाई-ढा. १ दुहा २, ३। ४. निशीथ उ. १२ सूत्र १।
भिक्खु जश रसायण