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ढाळ : १२ (पूज नै नमै रै सोभौ गुण करै)।
१ पुत्र भगू नै परवरौ, उत्तराधेन उमंग। सुंग्यानी रे! विप्र जीमायां तमतमा, चवदमैं झयण सुचंग । सुग्यांनी रे!
सरधा दुलभ देवां कही ॥ ध्रुवपद ॥ २ आद्रमुनी इम आखीयौ', 'सूगडांग छ?'६ संभाळ। सुज्ञानी रे!
व्राह्मण बे सहंस जीमावीयां, नरय तणा फळ न्हाळ।। सुज्ञानी रे! सरधा ३ आनंद श्रावक लियौ अभिग्रहौ, 'सातमें अंग" श्रीकार। सुज्ञानी रे!
अन्यतीर्थी नै आए॒ नहीं, असणादिक च्यारूं आहार।। सुज्ञानी रे! सरधा ४ प्रत्यख गोसाळा नै आपीया, सकडाल सेज्या संथार। सुज्ञानी रे! _ 'उपासग सातमैं ८ आखीयौ, नहीं धर्म तप लिगार।।सुज्ञानी रे! सरधा ५ दैतौ लैतौ वर्तमान देखने, मून कहीं तिण काळ। सुज्ञानी रे!
'पंचमधेन मैं परवरौ, सूयगडांग' संभाळ।।सुज्ञानीरे! सरधा ६ दुखी मृघालोढो११ देख नै, प्रभु नै गोतम पूछंत। सुज्ञानी रे!
किं दच्चा-दान किसौ दीयौ 'विपाक १२ सूत्र में विरतंत।। सुज्ञानी रे! सरधा ७ भाव-शस्त्र अव्रत भाखीयौ, 'ठाणांग दसमैं ठांण ५३। सुज्ञानी रे!
कोई अव्रत सेवायां धर्म कहै, जिण मारग रा अजांण।। सुज्ञानी रे! सरधा ८ नव प्रकारै पुन नींपजै, नवमा 'ठांणा'१४ मैं निहाल। सुज्ञानी रे!
समचै नवूई कह्या सही, समचै मन वचन संभाळ। सुज्ञानी रे! सरधा ९ करणी धर्म अधर्म नी कही, जूजूइ१५ दोनूं सुजांण। सुज्ञानी रे!
'आचारंग चौथा अधेन'६ मैं, तीजी मिश्र री करणी म तांण।। सुज्ञानी रे! सरधा
१. भगु नौं (क)। २. उत्तराध्ययन. अ. १४ गा. १२ ३. अज्झयण (क)। ४. दुर्लभ (क)। ५. आखियौ (क)। ६. सूत्रकृतांग. श्रुत. २ अ. ६ गा. ४४। ७. उपासक दशा. अ. १ सूत्र ४५। ८. उपासक दशा अ. ७ सूत्र ५१।
९. पंचम अध्ययन (क) १०. सूत्रकृतांग श्रुत. २ अ. ५ गा. ३२। ११. मृगालौढौ (क)। १२. विपाक. श्रुत. १ सूत्र ४२। १३. स्थानांग. स्था. १० सूत्र ९। १४. स्थानांग. ९ स्था. सूत्र २५। १५. अलग-अलग १६. आचारांग श्रुत. १ अ. ४ .
भिक्खु जश रसायण : ढा. १२