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१० आज्ञा माहै धर्म आखीयौ, बोलवौ युक्तौ न बार। सुज्ञानी रे! _ 'उत्कृष्टी चरचा आचारंग मैं', छठा अधेन रै दूजैविचार। सुज्ञानी रे! सरधा ११ जिन आज्ञा तणां अजाण नै, समगत दुलभ सुजांण। सुज्ञानी रे !
'आचाराग चौथा अध्येन मैं, चौथे उद्देशे" पिछांण।। सुज्ञानी रे ! सरधा १२ उद्यम करै आज्ञा विना, आज्ञा मैं आळस आय। सुज्ञानी रे!
सुगुरु कहै बै बोल होयजो मती, 'आचारंग पंच म रै छठा माय। सुज्ञानी रे! सरधा १३ आज्ञा लोपी छांदै चालै आपरै, ज्ञान रहित गुण हीण। सुज्ञानी रे!
'आचारंग दूजा अधेन मैं, छठे उद्देशे "सुचीन।।सुज्ञानी रे! सरधा १४ प्रमादी द्रव्य-लिंगी पासथा, वीर कह्या आज्ञा बार अवधार। सुज्ञानी रे!
'आचारंग चौथा अधेन" मैं, पिण धर्म न कह्यौ आज्ञा वार।। सुज्ञानी रे! सरधा १५ साधां छोड्यौ उन्मारग सर्वथा, आदर्यो मारग उदार। सुज्ञानी रे!
'आवसग चौथा अधेन'१० मैं, साधां छोड्यौ ते अधिक असार।। सुज्ञानी रे! सरधा १६ च्यार मंगल उत्तम सरणां चिहुं, केवली परूप्यौ धर्म मंगलीक। सुज्ञानी रे!
एहीज उत्तम सरणौ पिण एहनौ, तत आवसग'१२ में तहतीक।। सुज्ञानी रे! सरधा १७ इत्यादिक बोल अनेक छै, आगम मैं अधिकाय। सज्ञानी रे!
स्वाम भीक्खू सोध-सोध नै, आछी रीत दीया ओळखाय। सुज्ञानी रे! सरधा १८ पाखंडीया प्रभु पंथ उथापीयौ, ओलव्या४ जिन वचन अमोल। सुज्ञानी रे!
भीक्खू आगम न्याय सोधी भला, प्रगट कीधी पाखंड्यां री पोल।। सुज्ञानी रे! सरधा १९ सावज दांन मैं धर्म सरधाय नै, मतिहीण न्हाखै फंद माय। सुज्ञानी रे!
स्वामी सूतर५ न्याय संभाळ नै, व्रत-अव्रत दीधी बताया। सुज्ञानीरे! सरधा २० धर्म आगन्या बाहिर धार नै, भेषधाऱ्या मांड्यौ भर्म जाल। सुज्ञानी रे!
थिर नींव आज्ञा भीक्खू थापन, वारू जिन वच थाप्या विसाल।। सुज्ञानी रे! सरधा
१. उचित। २. बाहर। ३. आचारांग. श्रुत. १ अ. ६ उ. २ सूत्र ४८) ४. आचारांग. श्रुत. १ अ. ४ उ. ४ सूत्र ४५। ५. होज्यो (क) ६.आचारांग. श्रुत.१ अ.५ उ.६ सू. १०७-१०९। ७. आचारांग. श्रुत. १ अ. २ उ. ६ सूत्र १६६ ८. पासत्था (क)।
९. आचारांग. श्रुत. १ अ. ४। १०. आवश्यक. अध्ययन ४। ११. तंत (क) १२. आवश्यक. अध्ययन ४। १३.दिया (क)। १४. मिश्रित कर दिया। १५. सूत्र (क)। १६. भ्रम (क)।
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भिक्खु जश रसायण