________________
१ साधु
श्रावक-श्राविका,
समणी न हुइ स्वाम रै, २ किणहिक भीक्खू नैं कह्यौ, साध श्रावक नें श्राविका, ३ तिण कारण छै तांहरै, मोदक
प्रत्यख
लाडू
समणी विण खांडौ सही, ४ भीक्खू ऋष भाखै इसौ, पिण चौगुणी तणौ पवर, स्वाद आछी बुद्धि उत्पात सूं, उत्तर दिन के हुइ दीपती, समणी
तीन बायां
५
दूहा
६
त्यारी हुइ, संजम
भीक्खू ऋष भाखै भली, सुंदर ७ संजम लेवौ साथ त्रिण, पिण वियोग एक तणौ हुवां, स्यूं ८ सलेखणा करणी सही, त्यां करार पकौ इम करी, संजम ९ कुसलांजी
कही,
मटु
इक
साथै
सखर
वर्स
तीर्थ
समणी
तीजी
अदरावियौ साधपणौ
१ सरल भद्र भल समण सिरोमणि,
चरण करण धर समर्या चित्त सूं, २ खांत दांत चित शांति खरा, परम विनीत प्रीत हद पूरण,
१. जिसमें चार गुणी चीनी डाली जाय।
भिक्खु जश रसायण : ढा. ११
ऋष
भला
भरम
'लज
सिव
किता
थारै
नहीं
मोटौ
देख
खांडौ
अनूंप
दीयौ
तीन
शीख
तीनां
करिवौ
दोयां
इम
लेवा
दीधौ
अजबू
उभय
मैं
सुविनीत ।
बीत ॥
तीन ।
सुचीन ॥
मांण ।
पिछाण ॥
लेख |
संपेख॥
अनूप
सद्रूप॥
साथ।
ढाळ : ११
(स्वामी रायचंद राजा )
करी गाजै रे, गजब गुण ज्ञान करी गाजै ।
गजब गुण ज्ञान गुर भीक्खू पै अजब छटा, हद भारीमाल छाजै ॥ ध्रुवपद ||
साख्यात ॥
पेख।
सुविशेष?
तांम।
स्वाम॥
ताय ।
सुखदाय॥
राजै ।
रूड़ा करम भाजै ॥ गजब गुण.
थकी
लाजै २ ।
रमणी
साजै ॥ गजब गुण.
२. लज्जा (लौकिक और आध्यात्मिक) ।
३३