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११ अति उपगार करी पूज आवीया, सखर पण वर जोड़ां सुणावता, १२ ' व्रत अव्रत नै मांड' बतावता, '
श्री जिण आज्ञा मैं धर्म सरधावता, १३ जशधारी भीक्खू नौं जगत मैं,
प्रबल बुद्धि गुण पुन्यनौं पोरसौर, १४ शिष भारीमाल भीक्खू पैर सोभता,
भद्र प्रकृति बुद्धि पुन्य गुणे भला, १५ दसमीं ढाळे पूज दयाल नीं, देश-प्रदेश माहै जश दीपतौ
१. धर्म और अधर्म को ऊपर लिखकर नये ढंग से समझाते थे। वह इस प्रकार
है-
धर्म
व्रत में
त्याग में दया में
आज्ञा में
हृदयपरिवर्तन में
३२
अधर्म
अव्रत में
भोग में
हिंसा में
आज्ञा बाहर बल प्रयोग
या प्रलोभन में
,
हो । महामुनि !
मुरधर देश मझार इम करता उपगार हो । महामुनि ! थे भलां. सखरी रीत सुचंग हो । महामुनि ! सुण जन पांमैं उमंग हो। महामुनि ! थे भलां. वाध्यौ जश विख्यात हो । महामुनि ! स्वाम भीक्खू साख्यात हो।। महामुनि! थे भलां. सरल बड़ा सुविनीत हो । महामुनि ! परम पूज सूं पीत हो । महामुनि ! थे भलां. जाझी कीरत जाण हो । महामुनि ! विस्तरियौ सुविहांण' हो । महामुनि ! थे भलां.
२. मंत्र शक्ति से साधित स्वर्ण पुरुष, जिसके किसी अंग को काटकर सोना प्राप्त करने पर भी पुन: वैसा का वैसा हो जाता है।
३. पास।
४. प्रभात के प्रकाश की तरह ।
भिक्खु जश रसायण