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________________ ५ वारू रे भीक्खू नौं तप तहतीक', रूडै चित मुनि महा रमणीक।। भीक्खू स्वाम. ६ वारू रे दान मुनि नैं दे आंण, नित्य प्रति गोचरी करत प्रधांन।। भीक्खू स्वाम. ७ घोर ब्रह्म भीक्खू नौं सार, संग रहित त्रिहुं जोग श्रीकार। भीक्खू स्वाम. ८ इO धुन भीक्खू मुनिराज, जाणक चाल रह्यौ गजराज।। भीक्खू स्वाम. ९ भाषा सुमति भीक्खू नी भाल, निरवद निमल सुधा सम न्हाळ।। भीक्खू स्वाम. १० एषणा अधिक अनोपम सार, देखणहारौ पांमैं चिमत्कार।। भीक्खू स्वाम. ११ वस्त्रादि लैतां जैणा विसेख, मेलतां अति उपयोग संपेख।।भीक्खूस्वाम. १२ पंचमी सुमति भीक्खू नी पिछांण, सावचेत भीक्खू सुविहांण।। भीक्खू स्वाम. १३ मन वच काय गुप्त गुणवंत, सत दत सील दया निग्रंथा। भीक्खू स्वाम. १४ अष्ट संपदा गुण अधिकार, आचार्य भीक्खूअणगार। भीक्खूस्वाम. १५ आचार्य नां गुण सुछतीस, भीक्खू मैं सोभै निश दीस।। भीक्खू स्वाम. १६ पांच महाव्रत निर्मळ पाळंत, च्यार कषाय भीक्खू टालंत।। भीक्खू स्वाम. १७ वस करै इन्द्री पंच विचार, पंच सुमति, त्रिण गुप्त उदार।। भीक्खू स्वाम. १८ आचार पंच भीक्खू नां अमोल, वाड़ सहित ब्रह्म अधिक अतोल॥ भीक्खू स्वाम. १९ उत्पत्तिया बुद्धि भीक्खू नी उदार, ततखिण जाब दियै तंतसार।। भीक्ख स्वाम. २० अन्यमति स्वमति सुण वच सार, चित माहे पामैं चिमत्कार।। भीक्खू स्वाम. २१ वारू रे भीक्खू थांरा दृष्टंत अचर्यकारी अधिकअत्यंत॥ भीक्खूस्वाम. २२ वारू रे भीक्खू तुझ बुद्धि नां जाब, पूछतां उत्तर देवै सताब।। भीक्खू स्वाम. २३ वारू रे भीक्खू वीर्य आचार, कियौ उद्यम अधिक उदार॥ भीक्खू स्वाम. २४ वारू रे भीक्खू तुझ नीत वैराग तूं प्रगट्यौ बहु जन नै भाग॥भीक्खू स्वाम. २५ वारू रे भीक्खू तूं गिरवौ गंभीर, तूं गुणदधि कुंण पांमै तीर? भीक्खू स्वाम. २६ वारू रे भीक्खू तुझ मुद्रा ऐन, पेखत पांमै चित मैं चैंन। भीक्खू स्वाम. २७ सांवळी सूरत दीर्घ देह सुविसाल, लाल नयण गजहस्ती नी चाल।। भीक्खू स्वाम. २८ जीव घणां तिरणां इण काळ, आगूंच देख्या दीनदयाल।। भीक्खू स्वाम. २९ त्यां जीवां रै तिरण रै साज, तूं प्रगट्यौ मोटौ मुनिराज॥ भीक्खू स्वाम. ३० याद आवै भीक्खू दिन रैण, तन मन विकसावै मुझ नैंण।। भीक्खू स्वाम. ३१ 'मरणौ तेवर'२ तैं धार्यो सुद्ध माग, भर्म भंजण मुनि तूं महाभाग।। भीखू स्वाम. ३२ अनघ अथग गुण भीक्खू मझार, म्हैं संखेप कह्या सुविचार।। भीक्खू स्वाम. ३३ नवमीं ढाळ भीक्खू ऋष न्हाळ, महिमागर मोटा गुणमाळ|| भीक्खू स्वाम. १. यथार्थ ३. मृत्यु को आमंत्रित कर। २. आश्चर्यकारी भिक्खु जश रसायण : ढा. ९ २९
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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