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१३ पछै सरधा पिण फिर गई, मुणिंद मोरा ! वीरभांण री विसेख हो।
इन्द्रियां सावज्ज सरधनै, मुणिंद मोरा! वले दरव भाव जीव एक हो। सखर. १४ अनेक बोल ऊंधा पड्या, मुणिंद मोरा! विगड़ी अविनय थी बात हो।
वर्प बतीसै गण बारै कियौ, मुणिंद मोरा ! पछै मैणां नै मुंड्या साख्यात हो॥ सखर. १५ पट रह्या तेरां माहिला, मुणिंद मोरा ! सात हुआ इम दूर हो।
पिण पुन्य प्रबल भीक्खू तणा, मुणिंद मोरा! दिन-दिन चढतै नूर हो।। सखर. १६ सूरा सिंघ तणी परै, मुणिंद मोरा! सुरगिर जेम सधीर हो।
अगंज२ ओजागर अति घणां, मुणिंद मोरा! विडद निभावण वीर हो।। सखर. १७ टोळो छोड़ी नै नीसऱ्या, मुणिंद मोरा! त्यांरी पिण नहीं तमाय __ग्रंथ हजारां जोड़नै, मुणिंद मोरा ! सरधा दीधी ओळखाय हो। सखर. १८ अतिसय धारी ओपता, मुणिंद मोरा ! सासण सिरमणि मोड़ हो।
आचार्य इण काळ मैं, मुणिंद मोरा! अवर न एहनी जोड़ हो। सखर. १९ सावज निरवद सोधनै, मुणिंद मोरा! दान-दया ओळखाय हो।
व्रत-अव्रत वर वारता, मुणिंद मोरा! भिन-भिन भेद बताय हो। सखर. २० उत्पत्तिया बुद्धि आपरी, मुणिंद मोरा ! आछी अधिक अनंप हो
दृष्टंत विविधज दीपता, मुणिंद मोरा! चित चरचा अति चूंप हो। सखर. २१ ढाळ भली ए आठमी, मुणिंद मोरा ! भीक्खू गुण रा भंडार हो।
उमंग करी चरण आदर्यो, मुणिंद मोरा! समण-सिरोमणि सार हो। सखर.
१.रूप/तेज या चमक। २. अजेय। ३. उद्योतकर।
४. खिन्नता। ५. पद्य
भिक्खु जश रसायण : ढा.८