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२ जो सरधा आचार मिली नहीं, मुणिंद मोरा! तो भेळो न करां आहार हो।
इम पैहला समजाविया, मुणिंद मोरा ! आया देश मेवाड़ हो॥सखर. ३ समत' अठारै सतरै समै, मुणिंद मोरा! पंचांग लेखै पिछांण हो।
आसाढ सुदि पूनम दिनै, मुणिंद मोरा! कैलवै दिख्या-किल्याण हो। सखर. ४ अरिहंत नी लेइ आगन्या, मुणिंद मोरा! पचख्या पाप अठार हो।
सिद्ध साखे करी स्वामजी, मुणिंद मोरा! लीधौ संजम भार हो। सखर. ५ हरनाथजी२ हाजर हूंता, मुणिंद मोरा ! टोकरजी भीखू पास हो।
परम भगता भारीमालजी, मुणिंद मोरा! पूरो ज्यारो विसवास हो। सखर. ६ सतरौतरै कैलवा मझे, मुणिंद मोरा! प्रथम चोमासौ पेख हो।
देवळ अंधारी ओरी तिहां, मुणिंद मोरा! कष्ट सह्यौ सुविसेख हो। सखर. ७ हिवै चउमासौ उतर्यो, मुणिंद मोरा ! भेळा हुआ सहु आंण हो।
बखतराम नै गुलाबजी, मुणिंद मोरा! काळवादी हुआ जाण हो। सखर. ८ 'नव तत'३ मैं तरक उपजी, मुणिंद मोरा! एक जीव आठ अजीव हो।
जो सिद्धा में वसत पावै नहीं, मुणिंद मोरा! सरदै काल सदीव हो। सखर. ९ थिरपालजी फतेचंदजी, मुणिंद मोरा! भीखू ऋष जगभाण हो। ____टोकरजी हरनाथजी, मुणिंद मोरा! भारीमाल वहु जाण हो।। सखर. १० रू. चित भेळा रह्या, मुणिंद मोरा! वर षट संत वदीत हो।
जावजीव लग जाणजो, मुणिंद मोरा! परम माहोमाहि पीत हो। सखर. ११ सात जणा भेळा नां रह्या, मुणिंद मोरा ! केयक धुर ही थी न्यार हो।
कोयक पाछै न्यारौ थयौ, मुणिंद मोरा! थेट न पौहता पार हो!! सखर. १२ वर्स किता वीरभांणजी, मुणिंद मोरा ! रह्या भीक्खू रै हजूर हो।
अविनय औगुण आकरौ, मुणिंद मोरा! तिण सूं निखेध नैं कीयौ दूर हो। सखर.
१. संवत (क)।
३. तत्व (क)। २. उक्त गाथा में उल्लिखित नामों के अनुसार
४. वस्तु। केलवा चातुर्मासमें स्वामीजी आदिचार साधु ५. सरधै (क)। थे, परंतु ख्यात में ५ का उल्लेख मिलता है। ऐसा संभव भी है। पांचवें वीरभांणजी हो सकते हैं,क्योंकि वह पहले राजनगर चातुर्मास में तथा वि.सं. १८१७ में सुधरी में अलग हुए तब स्वामीजी के साथ थे।
भिक्खु जश रसायण