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________________ २ श्रावक कहै-तेरै अछां, आत्म तारण हारू हो। सिंघी वलि पूछ सही, संत किता सुखकारू हो? नीका सिव नेतारू हो। भीक्खू ... ३ श्रावक कहै-तेरै सही, साधु सखर श्रधालू हो। भीक्खू समण-सिरोमणी, वर माग विसालू हो। साधण सिव पट सालू हो।। भीक्खू ... ४ सिंघी कहै - आछौ मिल्यौ, वर . योग विचारू हो। श्रावक पिण तेरै सही, तेर संत तंत सारू हो। भीक्खू बुद्धि नां भंडारू हो। भीक्खू... ५ सिंघी मुख प्रशंसा सुणी, सेवग ऊभौ सुधारू हो। ततखिण तिण जोड्यौ तुकौ तेरापंथ औ तारू हो। विस्तर्यो नाम वारू हो। भीक्खू ... दूहा सेवग-कृत साध-साध रो गिलौ करै, ते तो आप-आप रौ मंत। सुण जो रे सैहर रा लोकां! औ तेरापंथी तंत। ढाळ . (सुविधि भजिये शिर नामी हो) ६ लोक कहै तेरापंथी, भीक्ख संवली२ भावै हो। हे प्रभु! औ तेरौ पंथ है, और दाय न आवै हो। मन भर्म मिटावै हो, .. सोही तेरापंथ पावै हो। १. विशिष्ट वेप/बहुमूल्य वस्त्र २. अनुकूल रूप में। २२ भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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