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________________ हो। ७ पंच महाव्रत पाळता, सुद्ध सुमति सुहावै हो। तीन गुप्त तीखी तरै, भल आतम भावै । चित्त तूं तेर ऐ चाहवै हो.. सोही तेरापंथ पावै हो। ८ पंथ अनैरा मैं रह्यो, तिण सूं भमण भमावै प्रभु! अब आयो तेरा पंथ में, तेरी आज्ञा सुहावै । तेह थी शिव पद आवै हो। सोही तेरापथ पावै हो ९ तेरौ वचन आगै करी, चारू धर्म चलावै हो। तेहज छै तेरापंथी थिर कीरत थावै हो। भीखू समचित भावै हो। सो ही तेरापंथ पावे हो।। १० हिंसा झूठ अदतर हरै, मिथुन परिग्र३ मिटावै हो। तीन करण तीन जोग सूं, त्याग करी तन तावै हो। वारू व्रत वसावै हो। सो ही तेरापंथ पावे हो॥ SEEEEEEEEEEEEEEEEEE 55 5 5 5 5 5 5 5 55, १. गुण विण भेप कू मूल न मानत, जीव अजीव का कीया निवेरा। पुन्य पाप कू भिन भिन जाणत, आसव कर्मा कू लैत उरेरा। आवता कर्मा नैं संवर रोकत, निर्जरा कर्मा कू दैत विखेरा। बंध तौ जीव कू बंधीया राखत, सासता सुख तौ मोख मैं डेरा। इसी घाट प्रकाश कीया, भव जीव का मेट्या मिथ्यांत अंधेरा। निर्मल ज्ञान उद्योत किया औ तौ है पंथ प्रभु तेरा ही तेरा॥१॥ तीन सौ तेसठ पाखंड जगत मैं, श्री जिन धर्म सूं सर्व अनेरा। द्रव्यलिंगी कई साध कहावत, त्यां पिण पकड्या त्यांराइज केडा। ताहि कू दूर तजै ते संत, विध सं उपदेश दीया रूडेरा। जिन आगम जोय प्रमाण कीया, जब पाखंड पंथ में पडिया विखेरा। व्रत अव्रत दांन दया वतावत, सावज्ज निरवद करत निवेरा। जिन आगन्या माहै धर्म वतावत, ऐ तौ है पंथ प्रभु तेरा ही तेरा॥२॥ -आचार्य भिक्षु २. चौर्य। ३. परिग्रह (क)। भिक्खु जश रसायण : ढा. ७
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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