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________________ दूहा १ हिव भीक्खू भारीमालजी, संत मनसोबौ' मोटौ चारित तेरै बैठा कियौ, २ सैर जोधाणां मैं सही, करी, सामायक-पोसा ३ 'फतैचंद सिंगी ३ चौहटै देख्या चालतां, ५ उत्तर मुझ ४ सामायक- -पोसा थानक मैं क्यूं तज थानक मन थिर कियौ, भीक्खू ऋष ६ कहै दीवांण किम बात घणी थिरता भारी घणां, परहर नींसऱ्या, वलि हुवै, जब ७ दीवांण कहै थिरता अबहि, वर्णवौ श्रावक तब आखै सकल, विवरासुध दे, सही, पायौ सुद्ध, मारग प्रगट, वारू ८ आधाकर्मी आदि हरख्यौ नौं ओहीज सिंघी सिंघी सुण ९ साधु प्रशंसै प्रकट, दीवांण १ फतेचंद श्रावक प्रत्यख सखर, कीधा नां किया? आदि दीवांण ते, वलि थे केता सही, धार्यौ सिव लेणौ श्रावक बाजार पद १. मानसिक संकल्प | २. दीवानजी का नाम 'फतेमल्लजी' होना चाहिए। जोधपुर में समानान्त नाम देने की पद्धति प्रचलित रही है। उनके वंशधरों का कथन है कि वे 'मल्लोत' (मल्लान्त) ही भिक्खु जश रसायण : ढा. ७ गुरु तब चौहटे आपै दियौ श्रावक ढाळ : ७ (सुविधि भजिये शिर नामी हो ) सुणजो धर सगळी दूर किया सहु परम to धारण भीक्खू जश सांभळौ वारू हो ।। मोटौ करै पूछा करै धर्म ., एम॥ महिमावंत | तेर फेर॥ ताहि । माहि ॥ दीपंत । पूछंत ॥ उदारू सारू केम? बात। विख्यात || दोष। थे। -- तेरापंथ इतिहास पृष्ठ ७३ ३. आपौ (क) । ४. शान्ति पूर्वक ५. विवरण सहित कुपंथ । बोलंत | खंत ॥ वारू संतोष ॥ मांण । वखांण ।। + हो । हो? हो । २१
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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