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दूहा
१ द्रव्य-गुरु तौ समज्या नहीं, खप बहु कीधी ताहि।
जैमलजी काका गुरु, आया त्यारै पाहि॥ २ भद्र सरल प्रकृति भली परै, जैमलजी नी जांण। भीक्खू तास भली परै, समजावै
सुविहांण।। ३ जैमलजी रै युक्ति' सू, दी सरधा बैसार। . भीक्ख रै साथै भला, ते पिण होयरे गया त्यार। ४ बात सुणी रुघनाथजी, भांग्या तसुं परिणाम।
'फकीरवालौ दुपटौ हुसी", नहिं हुवै थारो नाम।। ५ बुद्धिवंत साधु-साधवी, लेसी त्यां नै लार। __लाडै-कोडै घर छोड़िया, और हुसी निराधार॥ ६ थानै रोसी सहु जणा, थे म विचारौ बात?
थारै बहु परिवार छै, घणां तणां थे नाथ।। ७ थांरा साधां रा जोग सूं, हुसी भीक्खू रौ काम।
टोळौ भीक्खू रौ बाजसी, थारौ न हुवै नाम। ८ इत्यादिक वचनां करी, पाड्या तसुं परिणाम।
तब जैमलजी बोलीया, सुणौ भीखणजी आंम।। ९ गळा जितौ हूं कळगयौ', थे सुध पाळी सोय। 'पिंडतां रै जाणी' वर्ते', इम बोल्या अवलोय॥
ढाळ : ६
(सुण सुण रे! सीख सयाणा) १ शिष भीक्खू नां महा सुखकारी, भारीमाल सरल भद्र भारी। त्यांरौ तात किश्नौजी तास, बिहुं घर छोड्यौ भीक्खू पास।।
सुण-सुण रे! सीख सयाणा, रूड़ो भीखू जश रसांणा। भीक्खू जश रस अमृत भारी, सिव संपति सुख सहचारी।।
४. भि. दृ.-फुटकर संस्मरण-पृ. २७६ । २. जुगत (क)।
५. आकंठ मग्न हो गया। ३. हो (क)
६. पंडितों से क्या छिपा है।
REFEREFE= FEFFERE
१. पास।
भिक्खु जश रसायण