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१५ रुघनाथजी इसड़ी कहै रे, सांभळ भीक्खू बात। ___ पूरौ साधपणौ नहीं पढ़ रे, 'दुखम-काळ' साख्यात॥ चतुर नर. १६ भीक्खू कहै इम भाखीयौ रे, सूत्र आचारांग माय।
ढीला भागळ इस भाखसी रे, हिवड़ा सुद्ध न चलाय।। चतुर नर. १७ बल संघेण हीणा घणां रे, पंचम काळ प्रभाव।
पूरौ आचार पळे नहीं रे, नहि उत्सर्ग प्रस्ताव।। चतुर नर. १८ आगूंच जिनजी भाखीयौ रे, इम कहिसी भेषधार।
ए जाब सुणी रुघनाथजी रे, 'कष्ट हुआ' तिण वार।। चतुर नर. १९ गुरु-चेला रे हुई घणी रे, चरचा
माहोमाय। संखेप मात्र कहीं इहां रे, पूरी केम कहाय॥ चतुर नर. २० द्रव्य-गुरु कहै भीक्खू भणी रे, दोय घड़ी सुभ ध्यान।
चोखौ चारित पाळीयां रे, पांमैं केवळग्यांन।। चतुर नर. २१ भीक्खू कहै इण विध लहै रे, बेघड़ी
केवळग्यांन। तौ दोय घड़ी ताइ रहूं रे, सासरूंधी धरूं ध्यान।। चतुर नर. २२ प्रभव, सिजंभव आदि दे रे, बे घड़ी पाळ्यौ कै नाहि?
केवळ त्यांनै न ऊपनौं रे, सोच विचारौ मन माहि॥ चतुर नर. २३ चवद सहंस शिष वीर नै रे, सात सौ केवली सोय।
तेर सहंस नै तीन सौ, छद्मस्थ रहिया जोय।। चतुर नर. २४ त्यांनै केवळ नहीं ऊपनौ रे, त्यां बे घड़ी पाळ्यौ कै नाय?
थोरै लेखै त्यां पिण नहीं पाळीयौ रे, बे घड़ी चरण सुहाय।। चतुर नर. २५ बार बरस तेरै पखै रे, वीर रह्या छद्मस्थ । ____ थारै लेखै त्यां पिण नहीं पाळीयो रे, दोय घड़ी चारित।। चतुर नर. २६ इत्यादिक हुइ घणी रे, चरचा .
माहोमाय। समजाया समजै नहीं रे, कीया अनेक उपाय॥ चतुर नर. २७ पवर ढाळ कही पंचमी रे, चरचा विविध प्रकार। हिव भीक्खू किण रीत सूं रे, करै आतम नौं उद्घार।। चतुर नर.
_ चतुर नर सांभळी भीक्खू विलास।।
१. आचारांग प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन ६ २. इस समय। उद्देशा ४ सूत्र ८१ (विस्तृत वर्णन देखें बड़ा ३. निरुत्तर हो गए। टब्बा में)।
४. संक्षेप (क)। ५. श्वास (क)।
भिक्ख जश रसायण : ढा.५