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२ आसरै दशमैं वर्स आया, भारीमाल सरल सुखदाया।
भेषधार्यां माहै ' छतां सोय, सुत तात भिक्खू शिष होय।। सुण-सुण रे! ३ त्यांरै चेला तणी छै रीत, तिण सं शिष किया धर पीत।
त्यां मैं रह्या आसरै वर्स च्यार, पछै नीसरिया भीक्खू लार।। सुण-सुण रे! ४ किश्नांजीरी प्रकृत करडी जाणी, भारीमाल भणी वदै वाणी।
संजम लायक नहीं तुज तात, तूं तो उत्तम जीव विख्यात।। सुण-सुण रे! ५ आंपां नवी दिख्या लेसां सोय, लागु हुंता दीसै बहु लोय।
आहार-पांणी वचनादिक ताय, किश्नांजी नै दुकर इधकाय।। सुण-सुण रे! ६ तुज मन मुज पास रहवा रो, कै निज जनक कनै जायवा रो?
इम पूछ्यौ भीक्खू धर पेम, भारीमाल उत्तर दीयै एम।। सुण-सुण रे! ७ म्हारै तात थकी कांई काम, हूं तो आप कनै रहैसूं तांम।
संजम पाळसूं रूड़ी रीत, मोनैं आप तणी परतीत।। सुण-सुण रे! ८ किश्नांजी नै भीक्खू कहै ताम, थां तूं मूळ नहीं म्हारै काम।
चारित पाळणौ दुकरकार, तिण सूं थांनै न लेवां लार। सुण-सुण रे! ९ किश्नौजी कहै मुजने न लेवो, तो म्हारौ पुत्र मोनें खूप दैवौ।
सुत नैं राखतूं मुज साथ, इणने ले जावा न देवू विख्यात।। सुण-सुण रे! १० भीक्खू कहै -पुत्र ए थारौ, आवै तौ न हीं वरजां लिगारो।
जब आयौ भारीमाल पास, और जागा लेइ गयौ तास॥ सुण-सुण रे! ११ भारीमाल पिता नैं भाखै, किश्नांजी री कांण नहीं राखै।
थारा हाथ तणौ अनपांण, म्हारै जावजीव पचखांण।। सुण-सुण रे! १२ भारीमाल अभिग्र कीयौ भारी, दिन दोय निसरीया' तिवारी।
रह्या सुरगिर- जेम सधीरा, हळुकर्मी अमोलक हीरा।। सुण-सुण रे! १३ तब बाप थाकौ तिण वार, भीक्खू नै आंण संप्या उदार। ___थासूं ईज राजी छै एह, म्हां सूं तो नहीं मूळ सनेह।। सुण-सुण रे!
१. माहि (क)। २. तुझा ३. लागू (क)। छेड़छाड़ करने वाले। ४. मौनें (क)। ५. तणुं (क)।
६. अभिग्रह (प्रतिज्ञा) (क)। ७. निसरया (क)। ८. मेरु पर्वत।
भिक्खु जश रसायण : ढा. ६