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________________ तोड़ा दूहा १ थानक बारै नीसऱ्या, तड़कै आहारज जब द्रव्य-गुरु मन जांणीयौ, बात हुई अति जोर।। २ रहिवा जागां नां मिलै, तो फिर थानक आय। सेवग फिरीयौ सैहर मैं, जागा' म दीजो काय॥ ३ जो रहिवा भीक्खू भणी, जागा दीधी जांण। सर्व साथ सुणजो सही, संघ तणी छै आंण॥ ४ कड़ली कुबुधिज केलवी, आसी पाछा एम। जब भीक्ख मन जाणीयौ, करिवौ विचार केम।। ५ पुर मैं जागा ना दियै, जो फिर थांनक जाय। तौ पाछौ फंद मैं पड़े, दुखे नीसरणौ थाय।। ६ एहवी करे विचारणा, विहार कियौ तिण वार। सूरवीर सीह नी परै, न डा मूल लिगार। ७ आया बगड़ी बारणे, वावळ२ अधिक विसेख। वाजी तब पग थांभीया, भीक्खू परम विवेक।। ८ जैतसींगजी री जिहां, छत्र्यां अधिक उदार। देखीनै आया जिहां, बैठा छत्र्यां ९ पुर माहै जाण्यौ प्रगट, सुणीयौ द्रव्य-गुरु सोय। आया छत्र्यां नै विषै, साथै बौहळा' लोय॥ ढाळ : ५ (राम पूछ सुग्रीव नै रे) १ बगड़ी री छत्र्यां मझै रे, बहु लोक बोलै इम वाय। टोळौ छोड़ी मत नींकळौ रे, धीर्य धरौ मान माय।। चतुर नर भीक्खू बुद्धि नां भंडार॥ २ रुघनाथजी इसड़ी कहै रे, थे मांनौ भीखणजी वात। अबारूं आरौ पांचमों रे, नहि निभौला साख्यात॥ चतुर नर. १. जगह। ४. बहुत। २. भयंकर। ५. धीरज/धैर्य (क)। ३. आंधी। मझार॥ जश रसायण : ढा.५
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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