SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९ म्हांरा साधां नै हो तूं लेवै फटाय, जो चौमासो भीक्खू कहै राखौ जटबाज' नै ।। - २० ते चरचा मैं हो समझै नहीं लिगार, करौ चौमासौ दुलभ सामग्री ए लही ॥ २१ इणविध कीधा हो भीक्खू अनेक उपाय, पिण नाया कर्म घणां तिण कारण ॥ २२ वले' मिलीया हो भीक्खू दूजी वार, बगड़ी सैहर आय द्रव्य - गुरु नै इम कहै | मैं करौ २३ स्वामी भूला हो सुद्ध श्रद्धा - आचार, मन विविध प्रकारै समजावीया ॥ २४ पिण नहीं मानी द्रव्य - गुरु बात लिगार, जाण लीयौ एतौ न दीसै समझता ॥ २५ निज आतम नौं हो हिव हूं करूं निस्तार, एहवी १. अनपढ़ । २ बलि (क ) । १४ आहार- पांणी तोड़ नीसरया ।। २६ चौथी ढाळे हो आख्यौ चरचा सरूप, आछी आगलि बात सुहांमणी ॥ मन भेळो ३. एहवो (क) । रीत तिण मैं थाय । श्रीकार । ठाय। मझार | विचार | वार। धार। अनूप। भिक्खु -जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy