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दूहा
१. हिव भीक्खू द्रव्य-गुरु भणी वंदै बे कर जोड़।
माथै हाथ दियौ नहीं, 'चसमा देख्या और।।' २. जब भीक्खू मन जांणीयौ, आगूंच आखी बात।
पहिली मनड़ी फिर गयौ, तौ पूछू साख्यात॥ ३. कर जोड़ी नै इम कहै, यूं क्यूं स्वामीनाथ?
चित उदास तिण कारणे, माथै न दियौ हाथ।। ४. द्रव्य-गुरु भाखै ताहरै, संक पड़ी सुविचार।
तिण सू कर शिर नां दीयौ, मन पिण फाटौ धार।। ५. वलि थारै नैं माहरै, भेळी नहीं आहार।
वचन सुणी भीक्खू कहै, संक मेटौ इह वार।। ६. वलि भीखू मन चिंतवै, म्हांमैं यांमैं जांण। __ संजम समगत को नहीं, पिण हिवडां न करणी तांण। ७. प्राछित लेई एहनें, यूं प्रतीत उपजाय।
पछै खप करनै समजायनै, आणूं मारग ठाय।। ८. हम चिंतव द्रव्य-गुरु भणी, बोलै एहवी
संक जाणौ तौ मुझ भणी, प्राछित दौ सुखदाय॥ ९. इम प्रतीत उपजायनै, भेळौ कीयौ । आहार। हिव समजावै किण विधै, ते सुणजो
विस्तार।। ढाळ:४ (हिव राणी नैं हो समझावै पंडिता धाय ) १. हिव द्रव्य-गुरु नै हो समझावै भीक्खू स्वाम, निसुणौ बात
सूत्र वयण दिल सरदहौ।। २. अरि अघ हणिवै हो देव कह्या अरिहंत, गुरु . जांणौ निर्ग्रथा
धर्म जिणेस्वर भाखीयौ।। ३. साची सरधा हो ए जाणौ तंत सार, पांमै तिण सूं पार।
___ आज्ञा बारै धर्म को नहीं।।
वाय।
अमामा
१. आंखें बदली हुई लगी।
भिक्खु जश रसायण