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________________ तथा मौलिक साहित्य है तो क्यों नहीं सारे ही साहित्य का नये आधुनिक वैज्ञानिक ढंग से सम्पादन किया जाए। इस चिंतन ने एक नई दिशा प्रदान की और 'तेरापंथ का राजस्थानी वाङ्मय' के नाम से पूरी ग्रंथमाला की योजना प्रस्फुरित हुई। इस ग्रंथमाला का पहला विभाग 'जीवन दर्शन' से सम्बन्धित है तथा 'जीवन दर्शन के अन्तर्गत 'भिक्खु जश रसायण' एक शिरमौर ग्रंथ है अतः स्वतः ही "तेरापंथ" का राजस्थानी वाङ्मय में इसे प्रथम स्थान प्राप्त हो गया। लघु भिक्खु जश रसायण भिक्खु जश रसायण की तरह ही जयाचार्य ने एक 'लघु भिक्खु जश रसायण' की भी रचना की है। लघु भिक्खु जश रसायण' मूल 'भिक्खु जश रसायण' के बाद की रचना है। भिक्खु जश रसायण की रचना सं. १९०८ में हुई तथा लघु भिक्खु जश रसायण की रचना सं. १९२३ में हुई। दोनों में १५ वर्षों का अन्तराल है। सम्भवतः भिक्खु जश रसायण के विस्तार में न जाने वालों के लिए ही जयाचार्य ने लघु भिक्खु जश रसायण की रचना की है। यह उनके आचार्य भिक्षु के प्रति श्रद्धोत्कर्ष का ही परिणाम है। विषय वस्तु एक होने के कारण दोनों का वर्ण्य एक ही है पर दोनों की रचना सर्वथा भिन्न है। लघु भिक्षुजश रसायण में सबसे पहले जम्बू स्वामी से लेकरदेवर्धिगणी तक की पूरी आचार्य परम्परा का स्मरण किया गया है। तत्पश्चात् भगवान महावीर की परम्परा पर भस्मग्रह तथा धूमकेतु का उल्लेख करते हुए उसे लूंकासाह, आचार्य भिक्षु तथा मुनिश्री हेमराजजी तक जोड़ा गया है। पीठिका के रूप में काल-गणना का यह उठेंकन शोध की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। ___पांच ढालों-दोहों के इस जीवन-चरित्र में आचार्य भिक्षु पर बहुत सुन्दर प्रकाश डाला गया है। भिक्खु जश रसायण की तरह ही लघु भिक्खु जस रसायण का रचना कौशल भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। संक्षेप में सबकुछ कह देना ही इसकी विशेषता है। इसीलिए लघु भिक्खु जश रसायण को भी भिक्खु जश रसायण के साथ जोड़ दिया गया। भिक्खु-चरित (१) मुनि- हेमराजजी आचार्य भिक्षु एक महान साधक पुरुष थे। उनकी साधना ने अनेकानेक लोगों को बहुत गहराई से प्रभावित किया था। यही कारण है आचार्य भिक्षु को (xlii)
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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