SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चाय चाहि परभव प्रभव सुख चित्र - चित, चत्र समझणा समजणा छेहलो - चेहलो आचार्य आचारज श्रीकार __ - सरीकार प्रणमै - - परणमै परणम ताय - ताहि मुगत - मुक्त तिसिया - तसिया चरण - चर्ण भिक्खु जश रसायण पर प्राकृत-अपभ्रंश का तो भरपूर प्रभाव है ही, पर उर्दू जैसी विदेशी भाषा का भी प्रभाव है। कहीं-कहीं उर्दू को अपने रूप में ढालने का भी प्रयत्न किया गया है। उदाहरण के लिए जवाब के स्थान पर जाब का प्रयोग किया गया है। कभी-कभी ऐसे प्रयोग को अशुद्ध मान लिया जाता है, पर वास्तव में यह अशुद्धि नहीं है अपितु राजस्थानी भाषा की उच्चारण मृदुता का एक उदाहरण है। आभार उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रखकर ही पाठ संशोधन किया गया है। इसके साथ-साथ चार परिशिष्ट भी प्रस्तुत ग्रंथ में दिये जा रहे हैं। आशा है इससे इस ग्रंथ रत्न का अवगाहन करने में पाठकों को विशेष सुविधा रहेगी। नई प्रेरणा : नया चिंतन अपनी अनगिन व्यस्तताओं के बीच भी परमाराध्य युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी ने हमारा जितना मार्ग-दर्शन किया बल्कि स्वयं जितना समय और श्रम दिया, वह अवर्णनीय है। आचार्यश्री ने स्वयं एक-एक अक्षर को अपनी नजर से निकाला तथा रागिनियों की पद-संयोजना का अवधानपूर्वक निरीक्षण किया। यदि ऐसा नहीं होता तो कुछ चिंतनीय बिंदु रह ही जाते। आचार्यश्री की यह सजगता बहुत बड़ी प्रेरणा देती है। हम उनकी इस अयाचित कृपा के लिए श्रद्धा से आनत हैं। उनकी सूझ बूझ ही इस सारे प्रयास की आधार शिला है। साहित्य के संदर्भ में आचार्यश्री का चिंतन सतत चलता ही रहता है। आपके मन में यह भी विचार आया कि जब हमारा राजस्थानी भाषा का इतना विपुल (xli)
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy