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________________ , जगह ही दुर्लभ थी। यद्यपि यह मुद्रित प्रति काफी पुरानी है, पर इसमें लिपिगत अशुद्धियों की भी भरमार है। टाईटल पेज पर ही 'श्री भिक्खु जश रसायण' की " भीखु जे जस र्णायण" लिखा गया है। अन्दर भी अशुद्धियां भरी पड़ी हैं। फिर भी यह आश्चर्य की बात है कि उस प्रति के मुद्रण- प्रकाशन में लोंकाशाह तथा मंदिरमार्गी लोगों-संस्थानों का भी सहयोग रहा है। सद्विचार के प्रकाशन में सहभागिता का इसे एक रचनात्मक उदाहरण कहा जा सकता है। उसके बाद भीनासर, गंगाशहर के कुछ श्रावकों की ओर से भी इसका मुद्रण हुआ। फिर तेरापंथ द्विशताब्दी के अवसर पर " आचार्य चरितावली" तथा जयाचार्य निर्वाण शताब्दी के अवसर पर " तेरापंथ के तीन आचार्य " पुस्तक में भी इसका प्रकाशन हुआ है। उस का सम्पादन कई प्रतियों को मिलाकर किया गया था। पर हमने मूल पाठ के रूप में स्वयं जयाचार्य द्वारा रचना काल में लिखित मूल प्रति को ही स्वीकार किया है। ' तेरापंथ के तीन आचार्य ' पुस्तक को (क) प्रति के रूप में मानकर आवश्यक पाठ संशोधन किया है, जिसका संकेत पाद टिप्पण में किया गया है। पाठ5- संशोधन, पाठ- -भेद पाठ संशोधन एक कठिन काम है। क्योंकि समय-समय पर लिपिगत भेद होना अस्वाभाविक नहीं है। कभी-कभी एक ही शब्द के अनेक रूप भी सामने आ जाते हैं। कभी-कभी यह रूप-भेद प्रादेशिक आंचलिकताओं के कारण होता है तो कभी कभी छंदोबद्धता के कारण भी हो जाता है। काव्य शास्त्र की मान्यता रही है कि " अपि मासं मसं कुर्यात् छंदोभंगं न कारयेत्" भले ही मास शब्द की जगह मस शब्द का प्रयोग करलो पर छंदोभंग मत करो । जयाचार्य ने भी कई जगह इस काव्य-रूढि का पालन किया है। इसीलिए भिक्खु जश रसायण में कुछ लिपि भेद तथा भाषा- -भेद भी दिखाई देता है। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं. चतुर पर्व परिग्रह - - - चुतर, चुत्र प्रब ग्रह्यो, प्रग्रहो (xl) परणांम इचरज परचो प्रणाम प्रचो
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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