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________________ विनीत अविनीत की प्रकृति-चित्रण के प्रलम्ब प्रसंग का यह एक लघु अंश है। इससे यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि जयाचार्य की चरित्र-चित्रण की क्षमता कितनी बेजोड़ थी। इससे आचार्य भिक्षु और जयाचार्य की रचनाधर्मिता में एक आश्चर्यकारी साम्य के भी दर्शन होते हैं। तेरापंथ और भिक्खु जश रसायण तेरापंथ धर्मसंघ के लिए आचार्य भिक्षु एक ऐसे प्रेरणा-स्रोत हैं कि उन्हें पढ़ना हर तेरापंथी के लिए अनिवार्य है। इस दृष्टि से भिक्खु जश रसायण का पठन-पाठन निरंतर होते रहना स्वाभाविक है। पर इस वर्ष को जब भिक्षु चेतना वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है तो आचार्य भिक्षु को पढ़ना-पढ़ाना और भी आवश्यक हो गया। यों आचार्य भिक्षु को पढ़ने के लिए आज अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं, पर मूल स्रोत के रूप में खोजा जाये तो भिक्खु जश रसायण का नाम पहला आता है। इसलिए इस ग्रंथ का महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता आचार्यश्री तुलसी एवं युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ ने इस वर्ष जिन पांच ग्रंथों के स्वाध्याय का विशेष निर्देश दिया है, उसमें भिक्खु जश रसायण भी एक है। इसलिए यह आवश्यक था कि इस ग्रंथ का सुसम्पादन किया जाये। गुरुदेव का निर्देश रहा कि यह काम हम करें। हमारा यह सौभाग्य था कि हमें यह अवसर प्रदान किया गया। अतः हमने तत्काल कार्य शुरु कर दिया। पांडुलिपि एवं मुद्रित प्रति भिक्खु जश रसायण की अनेक प्रतियां-पांडुलिपियां संघ के भंडार में उपलब्ध हैं। जयाचार्य ने इसकी रचना १९०८ में की थी। उन्होंने इसे स्वयं अपने हाथ से लिखा, वह पांडुलिपि भी संघीय भंडार में उपलब्ध है। इसकी सर्वाधिक प्राचीन मुद्रित प्रति वर्धमान ग्रंथागार जैन विश्व भारती से उपलब्ध हुई। वह सं. १९४३ में राज भक्त प्रिंटिंग प्रेस बम्बई में छपी हुई है। प्रकाशक का नाम खेतसी जीवराज लिखा हुआ है। प्राप्ति स्थान भीमजी सामजी नु नवो मारो, बीजे दादरे बताया गया है, सहयोगियों की भी एक लम्बी लिस्ट छपी है। वास्तव में ये लोग कौन थे यह एक खोज का विषय है। उस समय विचार-प्रचार की ऐसी दृष्टि (rooxix)
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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