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भिक्खु जश रसायण की रचना कर वे आनंद मग्न होकर रहते हैं हूंस घणा दिन स्यूं मुझ हुंती, आज फली मन आश
भिक्खु जश रसायण नामे, ग्रंथ रच्यो सुविशाल।। (६३/४४) आचार्य भिक्षु के प्रति उनकी भक्ति इतनी अगाध थी कि वैसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं। आचार्य भिक्षु उनकी साहित्य साधना के बहुत बड़े प्रेरणास्रोत रहे हैं। नया सम्प्रदाय खड़ा करना कोई मामूली बात नहीं है। जब आदमी में अनेक प्रकार की विशेषताएं होती हैं, तभी उसके आस-पास योग्य व्यक्तियों का आभा मंडल बनता है। भिक्खू जश रसायण का पूरा तीसरा खंड आचार्य भिक्षु के इसी आभामंडल का विशद विवेचन है।
जयाचार्य आचार्य भिक्षु के प्रति इतने समर्पित थे कि वे तेरापंथ में दूसरे भिक्षु ही कहलाते हैं। वे एक प्रकार से आचार्य भिक्खु के सफल भाष्यकार हैं। भिक्षु जश रसायण में उनकी श्रद्धा के सान्द्र स्वर स्थान-स्थान पर मुखर हुए हैं। आचार्य भिक्षु को समझने और समझाने में जयाचार्य ने जितना प्रयास किया है वह उल्लेखनीय है। उन्होंने न केवल सिद्धान्त सारों के रूप में ही आचार्य भिक्षु के विचारों के आगम-स्रोतों को ढूंढ कर तुलनात्मक अध्ययन की दिशा में एक प्रगत कदम उठाया अपितु अपनी अन्य कृतियों में भी वे आचार्य भिक्षु के विचारों का सफल भाष्य करते हैं। चरित्र-चित्रण
चारित्र-चित्रण की दृष्टि से भिक्खु जश रसायण एक अद्भुत चरित काव्य है। इसमें आचार्य भिक्षु के चरित्र को जिस प्रकर्ष भाव से उत्कीर्ण किया गया है वह तो है ही, पर प्रसंग-प्रसंग पर अन्य चरित्र-चित्रों का रंगकर्म भी अत्यंत चित्ताकर्षक है। भिक्ख जश रसायण का तीसरा खंड इस सत्य का साक्षात् साक्ष्य है। आचार्य भिक्षु अपने शिष्यों के साथ इतने एकात्म/एकरस थे कि उनमें द्वैत जैसा कुछ लगता ही नहीं। बल्कि उनमें परस्पर पूरकता का अहसास होता है। इसीलिए जयाचार्य ने उनके समय के एक-एक साधु-साध्वी के जीवन चरित को भिक्खु जश रसायण में समेट लिया। इससे इतिहास की तो सुरक्षा हुई ही है, अणु भी विराट के साथ जुड़ कर अमर हो गया।
अपने पात्रों के चरित्र को सजीवता से प्रस्तुत करने की कला जयाचार्य ने जैन-आगम ग्रंथों तथा आचार्य भिक्षु से ग्रहण की है। उदाहरण के लिए हम विनीत अविनीत के चरित्र-चित्रण को देखें। इस संदर्भ में वे पूरा एक प्रलम
(Poorvita