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पंचमकाल
पंडित मरण पड़िकमण
पडिमा
पडिलेहण परिग्रह परिषह परीत्त संसार पाखंड
पारणा
पासत्था
जैन काल गणना के अनुसार ६ आरे -कालखंड माने जाते हैं। उनके अनुसार २१००० वर्षों का पंचम काल (दुषमा) कहलाता है। संयमी अवस्था में समाधि मरण। दोनों संध्याओं (प्रातः सायं) में किया जाने वाला जैनों का प्रायश्चित्त सूत्र। द्रव्य, क्षेत्र, काल या भाव के द्वारा जिस साधना के प्रकार का प्रतिमान (माप) किया जाता है, उसे प्रतिमा (पडिमा) कहते हैं। वस्त्र-पात्र आदि का यथासमय निरीक्षण करना। पदार्थ संग्रह और उसके प्रति होने वाली मूर्छा। साधु-चर्या में सहज रूप से आने वाले कष्ट। अनन्त भव-भ्रमण का परिसीमन करना। मिथ्या मत। तप की परिसमाप्ति। शिथिलाचारी साधु। उदीयमान शुभ कर्म-पुद्गल। स्पर्श, रस, गंध और वर्ण युक्त द्रव्य। . संयम को कुछ असार करने वाला। विपुल ज्ञान राशि का एक परिमाण-पूर्व। वे चौदह बताए गए हैं। आगम साहित्य के अन्तर्गत बारहवें अंग-दृष्टिवाद में इनका समावेश माना जाता है। पूर्व का ज्ञान धारण करने वाला मुनि पूर्वधर कहलाता है। एक सम्प्रदाय विशेष। इनकी मान्यता है कि अभी इस काल में कोई साधु नहीं हो सकता। सिद्धों से पहले अरहंतों को वंदना करने से आशातना लगती है। आवश्यक, सामायिक, प्रतिक्रमण आदि की कोई अपेक्षा नहीं है। अपने आपको श्रावक कहते हैं। विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें – पोतियाबंध री चौपई।
भिक्खु जश रसायण
पुण्य
पुद्गल पुलाक पूर्वधर
पोतियाबन्ध
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