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________________ एकान्तर ओघो (रजोहरण) करण कालवादी केवल ज्ञान गच्छवासी गुणठाणा गुप्ति चतुर्थकाल एक दिन के अंतर से किया जाने वाला तप। प्रमार्जन के काम आने वाला मुनि का एक उपकरण। करण का अर्थ है-साधन। मन, वचन और कायाये तीन करण प्रवृत्ति के साधन है। अक्रियावादी/नास्तिकों का ही परिवार है। इनकी मान्यता है कि जो गुण सिद्धों नहीं मिलते वे सब अजीव हैं। ये काल को ही सब कुछ मानते हैं। जितने भी अशाश्वत द्रव्य हैं वे सब काल हैं। विशेष जानकारी के लिए पढ़ें-आचार्यश्री भिक्षु कृत'काळवादी की चौपाई।' सम्पूर्ण, निरावरण ज्ञान सर्वज्ञता श्वेताम्बर जैनों का एक सम्प्रदाय। आत्म-विकास की क्रमिक भूमिका। मन, वचन और काया की प्रवृत्ति का निरोध। जैन काल-गणना के अनुसार अवसर्पिणी का चौथा (दुषम-सुषमा) विभाग। संयम, चरित्र। महाव्रत आदि धर्मों का आचरण। . उपवास। चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति। जैन मुनियों का अधो वस्त्र। दो दिन का उपवास। जो केवल ज्ञान को उपलब्ध नहीं है। राग ओर द्वेष को जीतने वाला। दलबन्दी। मन, वचन और काया की प्रवृत्ति। धर्मसंघ से बहिष्कृत या बहिर्भूत साधु-साध्वी,जो अपने उसी वेश में रहते हैं। पारमार्थिक वस्तु। धर्मसंघ-साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका। चारित चोथ भगत चोबीसथो चोलपटो (चुल्लपट्ट) छट्ठ भक्त छद्मस्थ जिन जिल्लाबन्धी जोग टाळोकर तत्त्व तीरथ ३१८ भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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