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आंबल वृद्धमान (आयम्बिल वर्धमान)
आचार्य के ३६ गुण
आधाकर्मी आर्त्त ध्यान
आसव, आश्व (आश्रव)
इन्द्रियवादी
उत्तरगुण
उत्पत्तिया बुद्धि
उदय
पारिभाषिक शब्द
बढ़ते हुए
प्रारम्भ में एक आयम्बिल। फिर क्रमशः दो तीन . सौ तक। चढा जाता है। अन्य तपस्या में तप के बाद पारण किया जाता है परन्तु इस तप में तप के बाद उपवास किया जाता है। इसमें कुल ५०-५० आयम्बिल और १०० उपवास किए जाते हैं। इस तप को पूरा करने में १४ वर्ष ३ मास २० दिन का समय लगता है।
१ आर्य देश २ प्रशस्त कुल ३ प्रशस्त जाति ४ प्रशस्त रूप ५ दृढ संहनन ६ धैर्य ७ अनाशंसी ८ श्लाघा- निरपेक्षता ९ ऋजुता १० स्थिर बुद्धि ११ आदेय वाक्य १२ जित परिषद १३ जितनिद्रा १४ मध्यस्थ १५ देश काल भावज्ञ १६ प्रत्युत्पन्नमति १७ अनेक देशभाषाविद् १८ ज्ञान आचार १९ दर्शन आचार २० चारित्र आचार २१ तप आचार २२ वीर्य आचार २३ सूत्र विधिज्ञ २४ अर्थ विधिज्ञ २५ तदुभय-विधिज्ञ २६ आहरण (उदाहरण) निपुण २७ हेतु निपुण २८ उपनय निपुण २९ नय निपुण ३० शीघ्र ग्राही ३१ स्व समयज्ञ ३२ परसमयज्ञ ३३ गंभीर ३४ अनभिभवनीय ३५ कल्याणकारी ३६ शान्त दृष्टि |
मुनि के निमित्त बनाया हुआ।
प्रिय के संयोग और अप्रिय के वियोग के लिए एकाग्र होना।
कर्म पुद्गलों को आकृष्ट करने वाले आत्मपरिणाम |
इन्द्रियों को कर्म - बंधन का हेतु मानने वाला । महाव्रतों को पुष्ट करने वाले गुण ।
जिसे कभी देखा-सुना नहीं, उस विषय का
तत्काल ज्ञान ।
कर्मोदय में परिणत आत्म-स्वभाव।
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