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१ आद हुआ
आदेसरू,
आदनाथ
तीजा आरा तेह मैं, मुगत
२ त्यां आद काढ़ी जिण धर्म री, 'जुगलवारो १
संसार री ने धर्म री,
दूहा
५
दीधी
भीखू
लीधा
३ आदि काढ़ी अरिहंत ज्यूं, आरा दुःसम तेहमैं, ४ भवि जीवां रा भाग सूं, श्रुत बले मोटा मुनि, उपगार कीधौ अति घणौ, पूरौ थोड़ा सो परगट करूं, ते सुणज्यो
१ साध - साधवी श्रावक - श्रावका, जिण मारग जमायौ जुगत सूं, थे भला अवतरिया लोकालोक नवोंइ ‘ततव' तणा, ज्यारा भेद जथातथ भिन-भिन भाखिया, ३ चारित लियौ एक सो च्यार आसरै,
कंइकां नै पाखंड मां सूं खांच नै, ४ जोड़ां कीधी मुनिवर जुगत सूं,
निरणा- न्याय वताया निरमळा, समकत सुध सरूप वतावीयौ, सावज्ज-निरवद न्यारा छांणिया, ६ ढूंढाड़ हाडोती वले कछ देश मैं, घणा रात-दिवस रटै रांम नाम ज्यूं,
१. यौगलिक युग ।
भिक्खु चरित : ढा. १३
की धौ
घणां
गया
रीत
भलाज
अरिहंत वचन
अत्यंत
घट घाली
केम
ढाळ : १३
(पूजजी पधारो हो नगरी सेविया)
२. तत्त्व।
चित
अरिहंत।
मतिवंत ।।
मिटाय |
बताय ॥
साध।
अराध ।।
उद्योत ।
जोत॥
कहिवाय ।
ल्याय ॥
ए थाप्या तीरथ च्यार हो महामुनी ! घणौ पाखंड दियौ निवार हो महामुनी !. भीखू भरत खेत मैं ।।
वले दया-दांन दीपाय हो महामुनी ! जिणवर ज्यूं दिया जमाय हो महामुनी ! थे. पूज री परतीत मन धार हो महामुनी ! आप दीधा पार उतार हो महामुनी ! थे. सैस अड़तीस रे आसरै गिणाय हो महामुनी ! जाणें भाख गया जिण राय हो महामुनी ! थे. निज गुण- परगुण न्याय हो महामुनी ! नहीं दीसै किण ही मत माय हो महामुनी ! थे. मुरधर देस मेवाड़ हो महामुनी ! आप इसरा किया उपगार हो महामुनी ! थे.
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