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७ प्रवचन री करै प्रभावना, ‘गिनाता अंग'' मैं अरिहंत आखीयौ, इण लेखे आपरै अति ओपतौ, धर्म आदि काढ़ी अरिहंत आदिनाथ ज्यूं, आप इण भव माहे पिण उत्तम हुंता, उतकष्टी अनोपम मोख छै, १० जनम किल्यांण कंटाळे जांणज्यो,
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चरम किल्यांण सरीयारी सोभतौ, ११ वीर जिणंद री गादी विराजीया,
इण विध पूज रे पाट परगट थया, १२ ए चिरत कह्यौ छै भीखू अणगार नो,
संवत अठारै साठा वरस मैं, १३ आखर आगौ-पाछौ आयौ हुवै, 'रिख वैणीदास कहै कर जोड़ नै,
१. णायाधम्म कहाओ - ८ सू. १८ । २. निकट / तीन-तीन कोस की दूरी पर।
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सुध मारग देवै दिखाय हो महामुनी ! तीर्थकर नांम - गोत बंधाय हो महामुनी ! थे. बंध्यौ तीर्थंकर नांम-गोत हो महामुनी ! ज्यूं कीधौ अत्यंत उद्योत हो महामुनी ! थे. परभव मैं पिण सोभाय हो महामुनी ! आप पोहचसौ तिण गति माय हो महामुनी ! थे. दिख्या मोहछव वगड़ी मझार हो महामुनी ! ए 'तीनूंइ जोड़े' विचार हो महामुनी ! थे. सुविनीत सुधरमा सांम हो महामुनी ! भारमलजी सांमी त्यांरो नांम हो महामुनी! थे. वगड़ी सैहर मझार हो महामुनी ! फागुण विद तेरस गुरवार हो महामुनी ! इधकौ ओछौ कह्यौ हुवै कोय हो महामुनी ! 'मिच्छामिदुकडं' छै मोय हो महामुनी ! थे.
इति मुनिश्री वैणीरांमजी कृत भिक्खु चरित सम्पूर्णम् ॥
३. 'कोई झूठ लागो हुवै बिना जाणियो' (क्वचित्)
भिक्खु जश रसायण