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दूहा
१ पाली रा चालीया पाधरा', दोय साध आया तिणवार।
रिख वैणीदास खुसाल जी, देख इचरज पाम्या नर नार॥ २ पग प्रणम्या श्री पूज रा, दीधौ माथे हाथ।
साता पूछयां सांनी करी, पिण मुख सूं न कीधी वात॥ ३ दुषम आरा तेह मैं, अवधि बागरियौ नहीं जाता।
संजम आराध्यो सांमजी, तिण सूं कही अलप सी वात॥ ४ हुवै विमाणीक देवता, तिण नैं अवध ऊपजै आय।
इण बात मैं सका नहीं, भाख गया जिणराय॥ ५ इण लेखे पूजजी तण, अवधि ग्यांन उपनौ आय। निश्चै तो जांणै केवळी, पिण संक न दीसै काय॥
ढाळ : ११
(कीड़ी चाली सासरे रे) १ दोनइ साध आया तिके रे, बोलै बे कर जोड़। दरसण दीठौ दयाल रो रे, पूगा मन रा कोड़॥
भीखू भजो भाव सूं रे। त्यां सुधारयां भव दोय, बुधवंत जसवंत होय। ___ यां सम अवर न कोय, इण आखा भरत मैं जोय, भीखू.॥ २ रिख वैणीदास इम वीनवै रे, थानै होज्यौ सरणा च्यार।
तुम सरणौ मुज भव-भवे रे, होज्यौ वारूं-वार। भीखू. ३ जिसोइ मारग जिण तणो रे, जिसोइज पायौ आप।
दिन-दिन इधका दीपीया रे, टाळ्या घणां रा संताप।। भीखू. ४ स्तुति अरिहंत सिध तणी रे, संभळाई
श्रीकार। जाण्यो भगत किहां थी भीखू तणी रे, इण अवसर मझार। भीखू. ५ इतलै आई तीन आरज्यां रे, वगतूजी झूमां डाहीजी जांण।
इचरज इधको ऊपनो रे, पूज कही ते वात मिली आंण।। भीखू.
१. सीधा/उसी दिन।
२. निश्चित नहीं का जा सकता।
भिक्खु-चरित : ढा. ११
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