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________________ दूहा १ चरम किल्यांण चढ़तौ हूवौ, तिण रौ सुणौ सहू विसतार। सरीयारी मैं सांम विराजीया, हिवे भाद्रवा मास मझार।। २ अलप असाता 'फेरा' तणी, कांयक जणांणी जाण। और असाता इधक न ऊपनी, परबल पुन प्रमाण।। ३ पूरव पाप परबल हुवै, ते 'रिबेर' घणा दिन-रात। एहवी असात वेदनी या नहीं, ए पदवीधर पूज विख्यात। ४ हिवे पजूसणां मैं परवरा, 'तीन टक हुवै वखांण। नर-नारी आवै घणा, सुणवा सुन्दर वांण॥ ५ सुकल पख सुहामणौ, मास भाद्रवै जांण। चोथज आई चांदणी, आउ 'नेरो'५ आयो पिछांण।। ६ सतजुगी नै सांमी कहै, थे आछा सिष सुविनीत। साझ "दीयौ थे मो भणी, मैं संजम पाळ्यो रूड़ी रीत॥ ७ आगै टोकरजी तीखा हुंता, विनैवंत विचार। भगत करी भारी घणी, सुवनीत हुंता श्रीकार।। ८ भारमलजी सूं भेळप भली, रहीज रूडी रीत। जांणक पाछल भव तणी, लगती हुंती पीत। ९ यां तीना रां साझ सूं, पाल्यौ सुध संजम भार। चित समाध रही घणी, थे रह्याज एकणधार। १० उतराधेन पैहला अधेन मैं", भाख गया वीर जिणंद। सिष सुवनीत हुवै सदा, तो गुर नै रहै आणंद।। ढाळ : ६ (पंथीड़ा रे वात कहो नी धुर छेह थी रे) १ देवै रे, देवै सीखावण सांम जी रे, सासण चलावण काम रे। साधज रे साध-श्रावक नैं श्रावका रे, घणां सुणतां था तिण ठाम रे।। सुणजो रे सुणजो सीख सांमी तणी रे।। १. दस्त। २. तकलीफ पाते हैं। ३. श्रेष्ठ। ४. तीनों समय (सुबह, मध्याह्न और रात में) ५. निकट। ६. एकता। ७. उत्तरज्झणाणि-अ. १ गा. १३। भिक्खु-चरित : ढा.६ २८९
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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