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आग्या रे आग्या अराधे एहनी रे, सेवा रे सेवा भगत कीजौ तेहनी रे, पदवी रे पदवी दीधी छै एहनै रे, संका रे संका मूल म आंणजो रे, कोई दोष रे दोष लगावै गण मझे रे, तो कांणरे कांणम राखजो तेहनी रे, ७ सुधरे सुध साधु नै सेवजो रे, आ छेली रे छेली सीखावण धारजो रे,
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मोनै रे मोने जांणता जिण विधे रे,
तिम हिज रे तिमहिज परतीत राखजो रे, आग्या रे आग्या लोपै एहनी रे, तिण नै रे तिनै साधू मत सरधजो रे,
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८ उसना रे उसना ने पासथा रे, अपछंदा रे अपछंदा छांदै रहै रे, ९ ए पांचा नै रे पांचा नै प्रभु नखेधीया रे, त्यांरो संग परचो करणौ नहीं रे, १० आणंद रे आणंद श्रावक अभिग्रह लीया रे,
त्यांरी सेवा रे सेवा भगत करूं नहीं रे, ११ वीर रे वीर जिणंद वखांणीयो रे, आ हीज रे आहीज रीत अराधजो रे, १२ सगला रे सगला साधू नै साधवी रे, जिण तिण ने रे जिण तिण ने मत मूंडजो रे, १३ आ दीधी रे दीधी सीखावण सांम जी रे, ओर' रे ओर कारण त्यारे को नही रे,
१. झूठा २. लिहाज ।
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राखता
मुज परतीत
भारीमालजी री आहीज़ रीत रे ॥
दोष
लागां काढ़े गण बार रे ।
मत
गणजो तीरथ मझार रे ॥ सुवनीत
सदा
रहै
रे।
आ जिण मारग री रीत रे ॥ भार लायक जांणी भारीमाल रे । यां मैं असल साधां री चाल रे॥ वले कर्म-जोगे लगावै कूर रे। प्राछित न लै तो करजो दूर रे || अनाचारी सूं रहिजो दूर रे। ज्यूं कर्म हुवै चकचूर रे ॥ कुसीलिया परमादी पिछांण रे। त्यां भागी है भगवंत आण रे || नसीत गिनाता विसाल आ बांधी भगवंत पाळ रे ॥ जिण मत थी न्यारा जांण रे। पेंहली बोलण रा पिण पचखांण रे || ओ आणंद अभिग्र' श्रीकार रे ।
रे ।
ज्यूं
पांमो
राखजो
रे।
भवजल पार रे। हेत वसेख दीजो देख-देख रे || तारण तांम रे।
दिख्या
एकंत
तिण सूं सीझै आतम कांम रे ||
३. देखें भिक्षु जस रसायण ढा. ५५ गा. ८, ९ के टिप्पण
४. अभिग्रह।
भिक्खु जश रसायण