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दूहा
१ भगोती' मैं भगवंत भाखीयौ, वीसमा सतक मझार।
छला दिन लग चालसी, निरमळ तीरथ च्यार।। २ वले 'उतराधेन दसमा अधेन' मैं, गोतम प्रतै कह्यौ भगवान।
दुषम आरा तेह मैं, जिण-धर्म चलसी असमांन। ३ धणी बिना ते जूझसी, लेसी आगम वचन अराध।
तो हिवड़ा मुज बैठां थकां, समो एक म कर परमाद। ४ वले वंकचूलिया मैं वारता, तेपना पछै विचार।
इधक पूजा अरिहंत कही, समण निगरंथ नी श्रीकार।। ५ तिण सूं पूज पूजावीया, दिन-दिन इधक दयाल। उपगार कीधा अति घणा, मेट्या
मोह-जंजाळ॥ ६ किहां किहां विचस्या सांम जी, किहां-किहां कीया उपगार? __ थोड़ो सो परगट करूं, ते सुणजो इधकार।।
ढाळ : ५
(भरत नरिंद तिण वार) १ हाड़ोती ढूंढार मझार, वले मुरधर देश मेवार।
आछेलाल! च्यारूं देसां में विचरीया जी।। २ पाखंड उठ्या अनेक, पूज मेट्या आंण ववेक।
___ आछेलाल! सूतर चरचा रा जोर सूं जी।। ३ कीधा साध-साधवियां रो थाट, रह्या दिन-दिन इधका गैहघाट।
आछेलाल! श्रावक-श्रावक किया घणाजी॥ ४ करता पर उपगार, आया मुरधर देस मझार।
आछेलाल! चरम उपगार हुवौ घणो जी।। ५ च्यार भाया नैं बायां सात, त्यां दिख्या लीधी जोड़े हाथ।
आछेलाल! वैरागे घर छोडीया जी।। ६ चांणोद आद दे जांण, पीपाड़ तांई पिछांण।
आछेलाल! छेला दरसण दीधा सांमजी॥ १. भगवई-श. २० सू. ७३।
२. उत्तरज्झयणाणि-अ. १० गा. ३१।
भिक्खु-चरित : ढा.५
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