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८ सिंघ मिरगादिक ने राजा जी, तप ताजा डाढ़ा तेज सूं।
__जीवन जीपै जोय।। ज्यूं आप केसर' नी परै गूंज्या जी, सदा धूज्या पाखंड धाक तूं।
थां सूं गंज' सक्यौ नहीं कोय॥ सांम. ९ वासुदेव बळ जाण्यौ जी, बखांण्यौ वीर सिधंत मैं।
__संख चकर गदा धरणहार॥ ज्यूं थारा ग्यांन दरसण चरित तीखा जी, नहीं फीका त्यां कर तेज सूं।
पूज पाखंड दियौ निवार। सांम. १० आखा भरत नों राजा जी, अति ताजा सेन्या सझ करी।
आंणै वेश्यां रो अंत॥ ज्यूं थे पाखंड सहु ओळखाया जी, हटाया बुध उतपात सूं॥
तत्व बताया तंत॥ सांम. ११ 'सक-इन्द्र '२ सिरदारी जी, वजरधारी सुर मैं सोभतो।
जखादिक जीपे जांण॥ ___ ज्यूं सूतर वजर श्रीकारी जी, बळधारी बुध उतपात सं।
पूज पाड़ी पाखंड री हांण। सांम. .. १२ 'आइच उगां' आकासै जी, विणासै तिमर तेज सूं।
इधकौ करै उद्योत॥ ज्यूं थे अग्यांन अंधार मिटायौ जी, बतायौ मारग मुगत रो।
घण-घट' घाली जोत।। सांम. १३ चंद सदा सुखकारी जी, परिवारी ग्रह ना गण मझे।
सोमकारी
सोभंत॥ ज्यू च्यार तीरथ सुखदाया जी, मन भाया भवियण जीव रे।
भीखू भलाज संत॥ सांम. १४ लोक घणा आधारी जी, अत भारी धांनां कर भत्यौ।
ते कोठागार कहाय॥ ज्यूं ग्यांनादिक गुण भरीया जी, परवरीया पूज परगट थया।
आधारभूत अथाय। सांम. १. केशरी सिंह।
४. सूर्य उदय होकर। २. जीत।
५. अनेक व्यक्तियों के हृदय में। ३. शकेन्द्र-प्रथम स्वर्ग का इन्द्र। ६. शांतिकारी। भिक्खु-चरित : ढा. ४