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________________ दूहा १ विध सूं करी विचारणा, वारूंवार वसेख। सुध-मारग लेणौ सही, परभव सांमो देख॥ २ रखे झूठ लागेला मो भणी, तो खप करणी वारूंवार। सूतर सगला वाचणा, ज्यूं संक न रहै लिगार।। ३ राजनगर भणतां थकां, उघड़ी अभिंतर आंख। हिवै चारित ले सुध पाळणौ, छोड़ आतम रौ वांक॥ ४ म्है वैरागै घर छोडीया, न्यातीला नै रोवाण। इण विध जनम पूरौ कियां, मूळ न होवै किल्यांण॥ ५ वीर-वचन विचारतां, ए निश्चै नहीं अणगार। खप कर समझावां एह नैं, मिल पाळां सुध आचार।। ढाळ : २ (आ अणुकंपा जिण आज्ञा में) १ एहवो विचार कियौ तिण ठांमै, गाढ़ी बात हिया मैं धार। टोकरजी हरनाथजी भारीमाल, समझे नै लागा पूज री लार।ओ भीखू. औ भीखू चिरत सुणौ भव जीवां ॥ २ मुरधर देस मैं आया तिवारी, मिलीया सोझत सैहर मझार। गुर नै कहै वीर वचन संभाळो, आपां मैं नहीं छै सुध आचार॥ ओ भीखू. ३ देव अरिहंत नैं गुर निग्रंथ, केवळी भाख्यो धर्म तंत सार। तीनूंह रतन अमोलख जाणौ, यांमे भेळ म सरधौ लिगार।। ओ भीखू. ४ और वसतरे मैं भेळ पड्यां थी, चोखी वसत विगडै छै वसेख। तो पुन मैं पाप रौ भेळ किहां थी? सांसौ हुवै तो सूतर ल्यो देख । ओ भीखू. ५ आ सुध सरधा पिण हाथै न आई, सुध किरीया थी णि अळगा परीया। आगम न्याय अजे सुध चालौ, तो राखू माथै गुर धरीया।। ओ भीखू. ६ भेषधारयां तो मूळ न मांनी, जब भीखू मन मैं विचारयौ एम। उतावळ कीधां तो समझै नांही, धीरे समझावसां धर पेम।। ओ भीखू. १. कदाचित्। ३. वस्तु। २. वक्रता। ४. अब भी। भिक्खु-चरित : ढा. २ २७९
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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