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________________ ७ गुर नै कहै चोमासौ भेळौ करसां, चरचा करां दोनूं रूड़ी रीत। सूतर वाचैनै निरणौ करसां, खोटी सरधा आपे छोड़सां विपरीत।। ओ भीखू. ८ रुघनाथजी कहै-चोमासौ भेळौ कीधां, वले म्हारा चेला नै लेवै समझाय। जब भीखू कहै-'जड़बाजांनै" राखौ, त्यांनै चरचा री समझ पड़े नहीं काया।ओ भीखू. ९ इण विध उपाय घणाइ कीधा, पिण चरचा न कीधी चित्त लगाय। कर्म घणा नै 'वोहल संसारी'२, ते तो किण विध आवै ठाय? १० बीजी वार मिलीया बगड़ी मैं, कह्यौ थे तो वीर-वचन वीसरीया। निरणो करंता निश्चै न देख्या, जब भीखू तड़के तोड़ निसरीया।। ओ भीखू. ११ बगड़ी सूं विहार कियौ तिण वेळां, बावल वाजवा लागी तांम। 'अजैणा" जांणे छतरी मैं बैठा, रुघनाथ जी पिण आया तिण ठांम।। ओ भीखू. १२ लोक घणा आया सैहर बारै, रुघनाथजी कहै वांरूवार। टोळौ छोड़े मती निकळौ बारै, धीरप राखौ बात विचार।। ओ भीखू. १३ बात हमारी माने लेवौ, नहीं निभोला ए दुषम काळ। सुध आचार साधु रौ न चालै, भीखू किण विध बोलै रसाळ।। ओ भीखू. ३. तेज आंधी। १. अनपढ़ों को। २. अधिक काल तक संसार में भ्रमण करने वाले। २८० भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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