SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूहा १ आदि काढी आदिनाथ ज्यूं, इण दुषम आरा माय। असल धर्म ओळखावीयौ, धिन भीखू रिषराय॥ २ आपी चीजां अमोलक, घाली घण घट माय। थोड़ी सी परगट करूं, सांभळजो चित ल्याय।। ढाळ : १२ (उस रघुपति के धर्म सुराजै सुखिया सगळा लोग) १ भगवंत भाखी सरधा राखी, असल लियौ आचार। ___ आइच' नी परे ग्यांन उद्योतौ, मेट दिया मिथ्यात अंधार।। __रिष भीखूजी नां धर्म सूं राजी, सुख पावै श्रीकार। २ चंद्रमा ज्यूं सोम निजर थी, दीठां दिल ठराय। क्रोध करी कोइ 'कंटक' आवै, सांमी देख सुख पाय।। ३ इत्यादि तीसों ही उपमा, भीखू नै सोभाय। चतुर होसी ते समजे जासी, भोळा नै खबर न कांय॥ ४ चरचा वाला नै चरचा आपी, ग्यांन वाळा नै ग्यांन। प्रश्न वाला नै प्रश्न आप्यौ, ध्यांन वाळा नै ध्यांन। ५ दिष्टंत वाळा नै दिष्टंत आप्यौ, हेत वाळा नै हेत। क्रोध करी नहीं बोले किरवारे, भली सीखावण देत॥ ६ संजम दे सिवपुर नां कीधा, वले आपी समकत सार। समणोवासक किया देइ नै, श्रावक नां व्रत बार।। ७ खमता दमता सुमता आपी, वले गमता वचन वखांण। दिढ़ता थिरता जमता जुरता, सूत्र-न्याय जोड्या सुध जांण। ८ रागी ते तो राजी होसी, धेखी करसी धेख। रागी धेषी नीं खबर पडेसी, वखांण सुण्या विसेख।। ९ बड़ा सिष बुधवंत वदीता, सारां सिरे सोभाय। आचार्य पदवी त्यांनै आपी, भारमलजी मन भाय॥ १. आदित्य। ३. कडुआ। २. दुर्जना भिक्खु-चरित : ढा. १२ २७१
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy