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दूहा
अळगा
१ साध देही नै छोड़ नै, विरहौ पड़ीयो छै पूज नो, समभाव
संजोग
२ अहो - अहो अथिर संसार ए, पुरष पूज सरीखा
था, पोहता
हर
३ सुख-दुख इण संसार मैं, भुगते ग्यांन सूं, मूरख ४ तीर्थंकर चक्रवर्त मोटका, काळ
ग्यांनी
जेतौ आउखौ
साधां
जाण्य
याद कीया सिध
५
१
५
काळ गया जांणी भीखू भणी हो, मेल्या जे मेहमा कीधी मांढी तणी हो, कही
सांमीनों सुजस घणो ॥
बांधीयौ, ते तो सांमजी, पोहता अरिहंत नै, काउसग
ढाळ : ११
(रघुपति जीत्यो रे )
३ जो विसतार करै मांढी तिणों हो, पिण साधु रे मुंढै सोभै नहीं हो, ४ संसार किरतब सरावै नहीं हो, पिण बीती बात वरणवै हो, सइकड़ां नर-नारी आवीया हो, जांणे के मेळो मंडीयो हो, ६ वले 'सूंस ” लेवै केइ चूंप सूं हो, शील - व्रत
१. नियम ।
1
भिक्खु चरित : ढा. ११
-
बैठा
रह्यां
जई
आज
कोइ कू
भुगते
न छोडै
भुगते
परलोक
सुख
दीधा
मांढी
कठा
रे
लग
लग
अनेक रूपीया लगावीया हो, अनेक उछाळ्या
लार ।
अनेक देइ सोभा करी हो, ते ग्रहस्थ नों ववहार || सांमी.
तो
सुणतांइ
इचरज
थाय ।
तिण रो बुधवंत जांणसी न्याय॥
सांमी.
त्यारे
सावज जोग
पचखांण ।
वागरै
निरवद
सांमी.
छोडी
घरां ना कांम।
गावै भीखू नां गुणग्रांम ॥ सांमी. उजम मन माही
आंण ।
केइ आदरै हो, केइ छोड़ै काचौ पांण ॥ सांमी.
जाय।
थाय ॥
विजोग ।
परलोग ||
होय ।
रोय॥
कोय।
सोय॥
वांण ॥
माय।
ठाय ॥
जाय।
जाय ॥
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