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८ आया ते साधु गुण गावै, भांत-भांत परणाम चढ़ावै।
थे मोटा उपगारी मेहमा भारी, आप तुले और कुण आवै।। भवियण! ९ थे पका, पका पाखंड हटाया, सूत्र-न्याय ।
बताया। दान-दया आछा दीपाया, बुधवंता मन भाया।। भवियण! १० सावज-निरवद भला निवेश्या, कीधा बुध प्रमाणं।
सूत्र-न्याय सरधा सुध लीधी, धारी अरिहंत आणं।। भवियण ! ११ साधां जांण्यो सांमी सूतां नै, घणी हुई छै वारं।
आप कहो तो बैठा करां, जब भरियौ काय हुंकार।। भवियण! १२ बैठा कर साधु लारे बैठा, गुण सांमी नां गावै।
बहू नर-नारी दरसण देखी, मन मैं हरषत थावै।। भवियण! १३ आयौ आउखो अण चिंतवीयो, बैठां-बैठां
जांणं। सुखे समाधे बारज दिसत, चट दे छोड्या प्राणं।। भवियण! १४ अणसण आयौ सात भगत रो, तीन भगत संथारं।
सात पोहर पिण माहे वरतीया, पकौ उतारयौ पारं।। भवियण! १५ मांढी सीवी नै दरजी पूगा, कहै सूई पाग मैं घाली।
इचरज लोक पांमीया अधिको, चट सांमी गया चाली॥ भवियण! १६ संवत अठारै साठे वरस, भाद्र सुदि तेरस मंगलवारं।
पूज पोहता परलोक आसरै, गुण गावै नर-नारी।। भवियण! १७ दिन पाछिलौ दोढ़ पोहर आसरै, इण वेळा आउखो आयौ।
दिवसे मरवौ राते जनमवौ, कहै विरला नै थायौ। भवियण!
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भिक्खु जश रसायण