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________________ ७. बहु गांवां-नगरां आया आय पड़ै पूज रे पाय ए, वंदणा करै, ९ ओर लोक करै ८ १० कहै - उ कीधो ११ नर-नारी है- उत्तम था ए सांम ए, सैकड़ा अमावता, १२ भांत - भांत करै गुणग्राम ए, किसा तणां, नर-नारी श्रावक- आया घणां । घणा, दरसणं करवा गुरां तणां ए॥ नमाय ए वंदना करै सीस सीस नमाय आतम नैं ए अनेक १. नहीं समा रहे । २६६ कहूं १३ सांमी भारमलजी आदि साध ए, कीधी बाध ए, ए, करे विसेख, देख मुनि नै उत्तम ही कांम, नांम जपीजै आवता, बाजार मैं गुण-ग्राम वसेख ए । हरपत हुवै ए|| कीधो कांम इण रिप तणों ए || ए । अमावता' । करै गावता नाम ए । गुण सांमी नां किसा- किसा कहूं नांम, सांमी मैं गुण घणां ए ।। त्यां कीधी सेवा बाध ए । असमाध टाळण सांमी तणी ॥ २. अधिक। ए । भिक्खु जरा रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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