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दूहा १ इण विध कीधौ अभिग्रहौ, भोळा लोकां तांम।
बात सुणी कहै पचखीयौ, संथारौ भीखू स्वाम।। २ जे धेषी हुता जिण धर्म नां, ते चित मैं पांम्या चिमतकार।
जांण्यौ दीसै ओ मारग खरौ, केइ वांदै वारूंवार। ३ संथारौ चावो' हुवौ, घणां गांवा-नगरां माय।
केइ माहोमा इम कहै, आपें वांदो पूज रा पाय।। ४ गुण गावै मुख सूं घणा, भल-भल भीखू सांम।
इण दुषम आरा मझे, भलौ सुधारयौ काम। ५ ठाणे२ कठेइ थपीया नहीं, इंद्री नही पड़ी हीण। __ व्याहार करता विचरता चालता, पका रह्या परवीण।।
ढाळ : ९
(एक दिवस लंका पति) . १ संथारौ चोखौ कीयौ, सरणौ अरिहंत नों लीयौ। . सरणौ
लीयौ, कियौ कार्य आतम तणों ए॥ २ मनि आंण्यौ मन संतोष ए, मेट्यौ राग नै रोस ए।
मेट्यो रोस नें, दोस कर्म नों टाळीयो ए॥ ३ सुमता धारी सांम ए, भजै भगवंत रो नाम ए।
भजै नाम नें, काम करै छै आतम तणों ए।। ४ हरष सहीत हुलास ए, तोडै छै करम पास ए।
तोडै पास ने, आस तो एक मुगत री ए।। ५ नर-नारी बहु आवता, गुण भीखू रा गावता ।
गावता, वचन बोलै मन भावता ए। ६ धेषी पिण केइ आवता, खांत करी खमावता । खमावता,
गुण भीखू रा गावता ए।।
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गुण
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३. विहार
१. प्रसिद्ध। २. स्थिरवास।
'. भिक्खु-चरित : ढा. ९
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