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दूहा
वाय।
१ खांत' करी खमावता, सर्व जीवां नै सांम।
वारूंवार विशेष जी, आछी भांत अमांम।। २ बावीस टोळां माहि तेह सूं, कडली चरचा रो पड़ियो हुवै काम।
अवर इ अनमती अनेक नै, खमावे ले ले नाम।। ३ वली आप तणां गछ माहिला, गछ बारे वरतै कोय।
त्यांनै पिण खमावता, हरषत मन मैं होय॥ ४ हिवै सांवण तो सर्व निकल्यौ, आयौ भाद्रवो मास। साधां नैं तेड़ी सांमजी, बोलै वचन विलास॥
ढाळ : ७
(मीठो छै पुन संसार में) १ श्रावक-श्रावका सुणतां थकां, बोलै अमृत छेहले ' अवसर सांमजी, सीख दियै सुखदाय॥
सुणजो सीख स्वामी तणी रे॥ २ थे आगे जाणता मो भणी, ज्यूं जांणजो भारीमाल।
संका म आणजौ सर्वथा, असल साधु री छै चाल।। सुण. ३ साध-साधवी ए सर्व छै, त्यांरा भारीमालजी नाथ।
भार सूंप्यो छै टोळा तिणों, कोइ म लोपज्यो यांरी बात॥ सुण. ४ अरिहंत आगन्या माहि रहै, जिण नै सरधजो साध साख्यात।
आगन्या लोपनै ऊधौ पड़े, त्यांरी म करजो पखपात॥ सुण. ५ इम ही आगन्या सतगुर तणी, रहै भारमलजी माय।
सुध आचार. पालै सही, त्यांनै मत दीजो छटकाय॥ सुण. ६ अरिहंत सतगुर नी आगन्या, कर्म-जोगे लोपै कोय।
वंदणा-प्रतीत करजो मती, साध म सरधज्यौ तिण में सोय।। सुण. ७ साची सीख तीर्थं-च्यार नै, विध सूं दीधी छै बताय।
इत्यादिक अनेक वचनां करी, कही कठा लग जाय। सुण.
१. गौर।
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भिक्खु जश रसायण