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८ हिवे सतजुगी सांम सूं, मुख सूं बोलै एहवी वाय। म्हारै विरहो पड़तौ दीसै पूज रो, आप जाता दीसो झंड' माय।
हाथ जोड़ी नै इम कहै। ९ वलता सांमी इम वागर, म्हारै झंड तणी नहीं चाहि।
आगे अनंती वार जीवड़ौ, गयौ देवलोकां माहि॥ सुण. १० पुद्गल ना सुख कारिमा', विणसतां नहीं लागै वार।
ग्रधी हुवै ते जाये नरक मैं, आगे खाय अनंती मार॥ सुण. ११ म्हें आगे पुद्गल खाधा मोकळा, सार जांण-जांण सोय।
देखतां-देखतां विणसे गया, काम न आवै आज कोय॥ सुण. १२ तिण कारण हूं देवलोक नी, करूं नहीं वाछां कोय। ___ पोचारे सुख पुद्गल तिणा, मुगत सुखा सूं मन मोय॥ सुण. १३ थे पिण वंछा पुद्गल तणी, मूल म करजो मन माहि।
अफासू नै अनएषणी, चित्त मैं धरजो मति चाहि॥ सुण. १४ वले लोलपणों करजो मति, माया-ममता नै मार।
दोष बयालीस टालनै, असल लीजौ सुध-आहार। सुण. १५ अरज्या भाषा नै एषणा, इत्यादिक आठ प्रवचन'। ___मन वचन काया करी, कीज्यौ घणां जतन॥ सुण. १६ साधपणौ सुध पाळज्यौ, चिंता फिकर म करज्यौ तास।
म्हांसुइ मिलेला ग्यांनी मोटका, वले वेगो करोला मुगत मैं वास॥सुण. १७ चेलां री ममता करजो मती, लीजो सुध जोय-जोय।
असल आचार पाळे तको, काचो म घालजो गण मैं कोय।। सुण. १८ असल आचार आछी तरें, पाळजो प्रभु-वचन पिछांण।
आग्यां म लोपज्यो अरिहंत नी, तो वेगा पांमसो निरवांण।। सुण. १९ हूं तो जातो दीसू परभवे, सीख दीधी छै थाने जाम।
लोक बतांवे कोइ आंगुळी, कदीय म कीजो एहवो कांम॥ सुण.
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१. सुर-समूह (सुर-वृन्द)। २. निस्सार। ३. तुच्छ।
४. ईर्या समिति। ५. प्रवचन माता। ६. कमजोर।
भिक्खु-चरित : ढा.७
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