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६ परिग्रहो' नवूइ जात नो रे, त्यांरा न्यारा-न्यारा भेद होय।
ममता करी हुवै किण ही ऊपरै रे, 'मिछामी दुकडं' छै मोय।। सुणजो. ७ क्रोध कीधौ द्वै किण ही ऊपरे रे, कड़ली सीख दीधी हुवै कोय।
'करला' 'काठा' वरुवा वचन रौ रे, 'मिछामी दुकडं' छै मोय॥ सुणजो. ८ मांन माया लोभ किया हुवै रे, राग-धेष किया हुवे दोय।
इत्यादिक अठारेइ पाप नी रे, 'मिछामी दुकडं' छै मोय।। सुणजो. ९ रागी सूं राग कियौ हुवै रे, धेषी सूं धरियौ हुवैधेष।
मन साचे हिवै मांहरे रे, 'मिछामी दुकडं' छै विशेष।। सुणजो. १० प्रथवी अप तेउ वाउ छै रे, ज्यांरी सात-सात लाख जात।
हणी हुवै तीन करण-जोग सूं रे, वारूंवार खमाऊं विख्यात।। सुणजो. ११ चवदैलाख साधारण वनसपतीरे, दस लाख प्रतेक।
बे ते चोरिद्री बे-बे लाख छै रे, वली-वली खमाऊं आंण ववेक।।सुणजो. १२ नारकी देवता तिर्यंच नी रे, जात च्यार-च्यार लाख।
चवदै लाख जात मिनख री रे, खमाऊंअरिहंत सिधारीसाख॥सुणजो. १३ वले बड़ा सिष सुवनीत छै रे, अंतेवासी
अमोल। आगे लैहर जे आई हुवै रे, खमावू छू दिल खोल।। सुणजो. १४ एहवी आलोवण कानें सुण्यां रे, आवै इधक वेराग।
करै त्यांरौ कहेवौ किसूं रे, त्यारै माथे मोटो भाग॥ सुणजो.
१. प्रग्रहौ (भाषा-भेद)। २. कटुक।
३. कठोर। ४. बुरा।
भिक्खु-चरित : ढा.६
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