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६ अनेक स्याळ आये अडै रे, को किम भागे सीह?
जे आचारे ऊजला रे, ते क्यांनै आणै बीह' धिन. ७ मेवाड़ मुरधर देस मैं रे, कछ देस हाडोती ढूंढार।
साची सरधा प्रगट करी रे, घाली घट मैं सार॥ धिन. ८ जठे श्रावक-श्राविका किया घणारे, केइ हुवा साधवी-साध।
ते चरणे लागा सांमी तणै रे, आछी टाली असमाध॥ धिन. ९ केइ भेषधारयां नैं छोड़ साधु हुआ रे, चरचा करनै सोय।
मान-अहंकार मेळनै रे, कुमी न राखी कोय॥ धिन. १० कुगुर छोड़ी सतगुर किया रे, आ चोथा आरा री रीत। __ घणा गावां नगरां मझे रे, पूज तणी धारी प्रतीत॥ धिन. ११ जस-करमी था जीवड़ा रे, आदेजा वचन 'आताप'।
भिक्खू विचरै ज्यां पाखंड भाजतो रे, धर्म आगे ज्यूं पाप॥ धिन. १२ दरसण भीखू रौ ज्यां देखीयौ रे, पेखीया वचन पिछांण।
सो जांणे स्वामी री सेवा करूंरं, उजम इधिको आंण।। १३ भज-भज रिष भीखू भणी रे, तज-तज पाखंड तास।
धज धरम धारो धुरा रे, करौ मुगत मैं वास।। १४ अनंत भव आगे कीया रे, संत न मिलिया सार।
कदा मिलीया तो ही सरध्या नहीं रे, आय उपनों पांचमें आर।। . १५ हिवै भीख मुनीसर भेटीया रे, गुणवंत- . ग्यांन भंडार॥
साचौ संजम लीधौ सही रे, पांमाला बेगा भव पार।
३. तेज।
१.भय। २. प्रियकारी।
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भिक्खु जश रसायण