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________________ दूहा १ पूज भीखनजी मोटका, मोटा गुण भरपूर। भव-जीवां भजौ तुम्हें, 'पोह उगते २ वले गुण गांवू भीखू तणा, सांभळजो सहुकोय। मोटा गुण महाव्रत ना कहूं, सूतर स्हांमो जोय॥ भीखनजी भरत खेत्र मझे, कीधौ धर्म उद्योत। जीवादिक ओळखावीया, घट-घट व्यापी जोत॥ ४ भजन कियां भीखू तणां, भाजै भव-भव भूख। कर्म कटै निरजरा हुवै, दूर जावे सब दूख। ५ छांण कीधी जिण धर्म री, भला निवेड्या न्याय। इसड़ा बुधवंत जीवड़ा, नहीं दीसै भरत रे माय॥ ६ तिहां भीखनजी रिष भेटीया, 'त्यारे माथे मोटा भाग'। सुणजो गुण सांमी तणा, एकमना चित लाग।। ढाळ : ४ (कीड़ी चाली सासरे रे) १ सांमी भीखू सारिखा रे, इण दषम आरा माय। __ हुवा नै होसी वली रे, आज न कोइ देखाय॥ भीखू गुण गायलो रे, सुधारया भव दोय। भी.------------- जसवंत बुधवंत जोय, भी., भजन करौ सुह कोय भी.॥ २ मिथ्यात मेट मोटे मुनी रे, कीधौ ज्ञान उजास। धर्म-अधर्म ओळखाविया रे, ज्यूं मुख दीसै काच।। भीखू. ३ धर्म-धुरा धुरंधरू रे, महमा मेर समान। भरत-खेत्र मैं भळके रह्या रे, मरद्या क्रोध नै मांन। भीखू. ४ खिम्या खरी सांमी तणी रे, कर्म काटण तरवार। तपसा पिण तुले आवै नहीं रे, प्रसिध लोक विचार।। भीखू. ५ दयावंत मुनि दीपता रे, गिरवा ज्ञान भंडार। ___एक जीभ कहणी आवै नहीं रे, पूज गुणां रो पार॥ भीखू. १. प्रभात काल में। ३. वे भाग्यशाली हैं। २. छान-बीन। ४. मेरु पर्वत। भिक्खु-चरित : ढा. ४ २५३
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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