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२ त्यां भीखनजी अवतरिया जी, कांइ धरिया जणणी' गर्भ मैं। ,
उत्तम जीव अपार। साध. 'समत सतरेसै बेयासी' जी, सुखवासी नंदण ऊपना।
सुपन लह्यौ श्रीकार।। साध. ३ सीह सुपनें माता जी, कांइ सुखसाता सुत नै जनमीया।
हवौ हरष उछाव। साध. ___दीपादे अंगजाता जी, कांइ पिता · बलूजी सोभता।
कुळ ओसवाळ कहाव। साध. .. ४ बड़े साजन वले वीसाजी, संकलेचा जातज जाणजौ।
एक परण्यां था नार। साध. घणो नहीं कियौ ग्रहवासो जी, कांइ आछो सीलज आदरयौ।
दिख्या री मन धार।। साध. ५ वरस पचीस आसरै वधिया जी, कांइ सधीया चेत खड़ा हुआ,
आयौ घट वेराग। साध. रुघनाथजी गुर धरीया जी, कांइ किरिया काची जांणनै,
_ पछै उपनौ सोच अथाग।। साध. ६ सूतर नै सुध वाच्या जी, कांइ राच्या ग्यांन रसाळ सूं,
ऊंडो दीयो उपीयोग। साध. भगवंत मारग भूला जी, कांइ डूला छोड़ संसार नै,
नहीं दीसै संजम जोग॥ साध. ७ राजनगर मैं भणता जी, कांइ गुणतां ग्यांन भलौ लह्यौ,
वरस पनरे चउमास। साध. सूतर माहि साचो जी, कांइ काचौ म्हे पाळां जको,
हिवै तोड़ न्हाखू मोह पास। साध. ८ आय कहै गुरां नै किरिया जी, वीसरिया वीर भाखी जका,
चूका समगत सार। साध. छोड़ो सुरत संभाळी जी, मन वाळी मारग मोकळो,
पिण उहां री उठ न हुई लिगार।। साध. १. जिणणी क्वचिद्।
३. अमर्यादित २. यह जैन संवत् श्रावणादि क्रम से है। ४. उत्थान क्रिया।
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भिक्खु जश रसायण