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दूहा
१ अरिहंत-सिध-साधू नमू, भाव-भगत उर' आंण।
गुर गिरवा गुणवंत नों, कहुं 'भीखू चरित' वखांण।। २ मोटा-मोटा मुनिवर हुआ, आगेइ चौथे आर।
वखाण्या मुख वीर जी, सूतर मैं सुध सार। ३ त्यांनै नेणां नहीं निरखीया, वीर कह्यौ विसतार।
पिण धिन-धिन भीखू सांमजी, प्रगट्या पांचमें आर॥ ४ गुण गावै गुणवंत गुर तिणा, भोळा नै मन नहीं भाय।
'ग्यांनी कह्यौ गिनाता मझै,' तीर्थंकर गोत बंधाय।। ५ उतकष्टा परिणाम सूं, उत्कष्टी आवै रसांण।
संका म आंणौ सर्वथा, वीर मुंढ़ा री वांण।। ६ तिण काळे नै तिण समै, दुषम आरा नी बात।
पूज भीखनजी प्रगट्या, सुखी साध साख्यात।। ७ सुखी कथा सुखी वारता, सुखी सरधा आचार। सुखे-सुखे जाय मुगत मैं, आवागमण
निवार॥ ८ जनम किहां दिख्या किहां, परभव . पोहता किण ठांम।
किया चोमासा किण विधे, तेहना पिण कहूं नाम।। ९ जस मेहमा घणी जगत मैं, कही कठा लग जाय। पिण थोड़ी सी परगट करूं, सांभळज्यो चित ल्याय॥
ढाळ : १
(हरिया नै रंग भरिया जी.) १ जंबूदीप भरत खेतौ जी, कांइ देस मुरधर दीपतौ।
___ कांइ कांठे-कोर कहवाय। नगर कंटाळ्यौ नीकौ जी, कांइ कमधजरे राज करै तिहां।
बखतसिंघ सोभाय। साध भीक्खू सुखदाया जी, मन भाया भवियण जीव रै।। १. हृदय।
३. राठौड़ वंशी क्षत्रिय। २. ज्ञाता श्रुतस्कंध १ अध्ययन ८ सूत्र १८।।
भिक्खु-चरित : ढा. १
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