________________
९ अबारूं पांचमों आरो जी, कांइ सारो संजम नहीं पळे,
इत्यादिक कह्या ढीला वचन अनेक। साध. पिण सूत्र न्याय सांको लीधा जी, कांइ कीधा कष्ट' रूड़ी परे,
. वीर वचन बताय वसेख।। साध. . १० सात चोमासा आगे जी, मन भांगे त्यां माहि रह्या,
कितलायक समजावण काज। साध. संजम लेवा सूरा जी, कांइ पूरा असल आचार स्यूं,
साझण सिवपुर राज।। साध. ११. भीखनजी आदि विचारी जी, कांइ त्यारी जणा तेरे हुवा,
करवा आतम कांम। साध. तेरे श्रावक समाइ पोसा जी, कांइ सैहर जोधांणा मैं किया,
___ जठे तेरापंथी दीयौ नाम। १२ समत अठारो सतरो जी, कांइ सुथरो समोर आयो तिहां,
तिहां सबळो हुवो सुगाल। साध. साधपणौ सुध-लीधौ जी, कांइ कीधौ कारज केलवै,
परभव सांहमौ भाळ॥ साध. १३ पांच देस प्रगटीया जी, गुण रटीया रांम --नाम - ज्यू,
कटीया कर्म करूर। साध. 'पाखंड घौचा' पोचा' जी, कांइ_ग्यांन बले मोटे मुनी,
भांज किया भखभूर ।। साध. १४ सांमी ग्यांन करी गुणसागर जी, बुध आगर अर्थ नै हेत रा,
ओजागर घणा अमोल। साध. भांत-भांत गुण भरिया तरिया, तार रह्या भव जीव नै,
त्यांरो तीखौ बधीयो तोल।। साध.
१. निरुत्तर। २. श्रेष्ठ समय। ३. सुकाल।
४. पाखंड (शास्त्र विरुद्ध आचरण करने वाला।)रूप तिनका। ५. कमजोर। ६. नष्ट।
भिक्खु-चरित : ढा. १
२४७