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३४ अटकळ सूं
अवधि
दाखी।
तथा
साखी।
धिन धिन
आख्यात, तथा बुद्धि थी ऊपनौ, तिकौ सर्वज्ञ सर्वज्ञ साखीजी आगूंच आखी, प्रगट पिण छांनें नहीं राखी । भीक्खू स्वाम, बात सूता भणी, हुई बैठा करां, भर्यौ हूंकारं ऋषि जी तिण वारं, बैठा कर मुनि बैठा
अचरज
भाखी॥
३५ स्वामी
पूछ्यौ
तब
धिन धिन भीक्खू स्वाम शासण
रा
महा
वारं ।
हूंकारं ।
लारं ।
सिणगारं ॥
उपगारी।
संत गुणग्राम, आप पाखंड, हटाया
बड़ा-बडा
बहु
वारी ।
बहु वारी वलि जन तारी, फुन दान-दया दिल मैं धारी।
नेतारी।
धिन धिन भीक्खू स्वाम आप परम कीरति प्यारी आप धिन धिन भीक्खू स्वाम, ३७ दरजी मांढी सींव, सूई
वदै
जनक स्वाम तिवार, गया
चट दे
कीरति
चट दे चाली प्रत्यख भाली, वतका ए अति अचर्यवाली। धिन धिन भीक्खू स्वाम, पूर्ण ३८ मांढी तेरे खंड, तणी महोत्सव कीधा अधिक, कार्य लौकिक धारी जी आज्ञा बारी,
कीधी
त्यारी।
लौकिक
धारी ।
पंच सय कहै लारी।
धिन धिन
आसरै भीक्खू स्वाम, सप्त अठारै
पौहर
संथारी॥
साठ, भाद्रव
परभव पोंहता पूज्य, तेरस मंगलवारी जी कांई सरीयारी, भारीमाल धिन धिन
मैं वर्ष
मैं
३६ करै
३९ समत
४० घर
भीक्खू स्वाम, जाउं
पचीस,
आसरै
रह्या, पछै
वर्ष
भीक्खू स्वाम, प्रगट
भेषधारयां
सुव्रत फासं जी मुनि गुण रासं, धिन धिन
लघु भिक्खु जश रसायण : ढा. ५
.
मग
जग
इम
पा
सुदि
पाट
तस
अठ
बहु
सुध
तयांळीस
जन
जशधारी ।
अणगारी ॥
घाली ।
चाली।
पाली॥
सारी।
मंगलवारी।
बैठा भारी ।
बलिहारी ।
वासं ।
व्रत
जाझो
फासं।
जासं ।
विश्वासं ॥
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