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४१ आसरै सितंतर वर्ष, आयु पाळ्यौ स्वामी।
परभव कियौ पयाण, धर्म मूरत धामी। मूरत धामी जी अति हित कामी, पदधार परम संपति पामी। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, निमल जग मैं नामी। ४२ भीखू तणे प्रसाद, जीव बहुला तरिया।
सांप्रत काळे तिरै, स्वाम वच सिर धरिया। सिर धरिया जी जन उद्धरीया, तिरस्यैज अनागति गुण-दरिया।
धिन-धिन भीक्खू स्वाम, तास उत्तम किरिया। ४३ भीक्खू 'भवदधि पाज', भाव नावां तरणी।
ज्ञान-क्रिया करि युक्त, कहा कहियै करणी। कहियै करणी जी वर उच्चरणी, संक्षेप मात्रविध मैं वरणी।
धिन-धिन भीक्खू स्वाम, मूर्ति तसु मनहरणी। ४४ उगणीसै
तेवीस, माघ सुदि तिथ तीज। . गुरुवारे ए जोड़, करी भीक्खू बीजं। भीक्खू बीजं जी तसु जप कीजं, भारीमाल ऋष रमणीजं। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, लहै 'जय-जश' रीझं।।
इति लघु भीक्खू जस रसायण॥
१. भव-समुद्र पार करने के लिए सेतु।
२. दूसरी वार।
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भिक्खु जश रसायण