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२८ सवा पौहर उनमान, दिवस चढ़ियां जाणी।
निज कर सेती आप, स्वाम. पीधौ पाणी। पीधौ पाणी जी अति गुण खाणी, आसरै मुहूर्त पाछै जाणी। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, वदै इह विधि वाणी॥ २९ आवै संत सुजाण, मुनि स्हामा जायौ।
वलि आवै छै अज्जा, वदै इह विधि वायौ। इह विधि वायौ जी जन सुण तायौ, सुणतां वलि वर बहु मुनिरायौ।
धिन-धिन . भीक्खू स्वाम, चरम वच फुरमायौ। ३० जन कहै स्वामी तणा, जोग मुनि मैं वसिया।
एक मुहूर्त आसरै, साधु आया तिसिया। आया तिसिया जी बे गुण रसिया वंदणा करनै मन हुलसीया। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, दुरितरे दोहगः न्हसिया॥ ३१ वैणीरामजी संत, बड़ा जग विख्यातं।
वले कुसालजी साथ, वंदै सिर करि नाथं। करि नाथं जी अति रळियातं, तसु स्वाम दियौ मस्तक हाथं। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, अमल जश अखियातं॥ ३२ दोय आंगुली थकी, सैन करिनै जाणी।
सुखसाता पूछंत, कची चखु पहिछाणी। पहिछांणी जी उचरंग आणी, सावचेत इसा मुनि गुणखाणी।
धिन-धिन भिक्खू स्वाम, मही कीरति माणी।। ३३ साधू आया तेह, अधिक ही गुण गातं।
दोय मुहूर्त आसरै, आयौ समणी साथ। समणी साथं वंदै नाथं, जन कहै अवधि उपनो ख्यातं। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, कही अचरज वात।।
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१. दो। २. पाप। ३. दुःख।
४. प्रफुल्लित। ५. इशारा।
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भिक्खु जंश रसायण